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न्याय कन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम्
प्रशस्तपादभाष्यम्
परत्वस्योत्पत्तिरित्येकः कालः । ततः सामान्यबुद्धेरुत्पत्तिः, दिपिण्डसंयोगस्य च विनाशः । ततो यस्मिन् काले गुणबुद्धिरुत्पद्यते तस्मिन्नेव बुद्धि के द्वारा परत्वादि गुणों की उत्पत्ति होती है । उसके बाद ( परत्वादि गुणों में रहनेवाले) सामान्य विषयक बुद्धि की उत्पत्ति, उक्त द्रव्य और पूर्व दिक्प्रदेश इन दोनों के संयोग का नाश, ये दोनों काम एक ही समय होते हैं । इसके बाद जिस समय परत्वादिगुणविषयक ( विशिष्ट ) बुद्धि की उत्पत्ति होती है, उसी समय ( कथित ) दिक्प्रदेश और ( परत्वादि गुणों के आधार
न्यायकन्दली
गुणविनाशस्य कारणम् गुणबुद्धिस्च द्रव्यबुद्धेः कारणम्, अपेक्षाबुद्धिविनाशगुणबुद्धयुत्पादौ च युगपत् स्याताम्, अतो गुणस्य विनश्यत्ता द्रव्यबुद्धेचोत्पद्यमानतापि युगपत् स्यात् । ततः परत्वविशिष्टद्रव्य बुद्धेरुत्पादः परत्वगुणस्य च विनाशः ।
संयोगविनाशादपि कथं
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[ गुणे परत्वापरत्व
परत्वापरत्वयोविनाश इति प्रश्ने कृते परत्वस्याधारे पिण्डे कर्मोत्पद्यते, क्षणान्तरे तेन कर्मणा दिशः परत्वाधारपिण्डस्य च विभागः क्रियते, अपेक्षा
सत्याह- अपेक्षा बुद्धिसमकालमेव
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इसके बाद, अपेक्षाबुद्धि के विनाश से गुण की विनश्यत्ता ( उत्पन्न होती है ) | 'गुणज्ञानतत्सम्बन्धेभ्यः' ( इस भाष्यपङ्क्ति का ) ( गुणश्च गुणज्ञानश्च तत्सम्बन्धश्च तेभ्यः' ( इस व्युत्पत्ति के अनुसार यह अभिप्राय है कि ) गुण एवं गुण का ज्ञान और गुण का सम्बन्ध इन तीनों से द्रव्य बुद्धि अर्थात् परत्व गुणविशिष्ट द्रव्य बुद्धि की ) उत्पद्य - मानता निष्पन्न होती है। ये सभी काम एक ही समय होते हैं । अपेक्षाबुद्धि का विनाश ( परत्वादि ) गुणों के विनाश का कारण है । गुणबुद्धि ( गुणविशिष्ट ) द्रव्यबुद्धि का कारण है ! अतः अपेक्षाबुद्धि का विनाश और गुणबुद्धि का उत्पादन दोनों एक ही समय होते हैं । इसीलिए गुण की विनश्यत्ता और द्रव्यबुद्धि की उत्पद्यमानता ये दोनों भी एक ही समय होंगी । एवं इसी कारण ( परत्व ) गुण की विनश्यत्ता और ( परत्वगुणविशिष्ट) द्रव्य बुद्धि की उत्पद्यमानता ये दोनों भी एक ही समय होंगी। इसके बाद परत्वगुण विशिष्ट द्रव्य बुद्धि की उत्पत्ति एवं परत्व गुण का विनाश होगा |
( २ ) केवल संयोग के विनाश से परत्व और अपरत्व का विनाश किस रीति से ( किस स्थिति में ) होता है ? यह प्रश्न किये जाने पर 'अपेक्षा बुद्धिसमकालमेव ' इत्यादि सन्दर्भ लिखा गया है । ( अर्थात् जहाँ निम्निलिखित स्थिति होती है, वहाँ संयोग के विनाश से परत्व का विनाश होता है । ( जैसे ) अपेक्षाबुद्धि की उत्पत्ति के समय ही पिण्ड ( परत्वादि के आधार भूत द्रव्य ) में क्रिया उत्पन्न होती है । इस क्रिया के द्वारा आगे दूसरे क्षण में उक्त पिण्ड का पूर्व दिशा के साथ विभाग उत्पन्न होता है, एवं