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४०१
प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम्
४०१ प्रशस्तपादभाष्यम् तत्सम्बन्धेभ्यो द्रव्यबुद्धेरुत्पद्यमानतेत्येकः कालः। ततो द्रव्यबुद्धेरुत्पत्तिर्गुणस्य विनाश इति ।
___ संयोगविनाशादपि कथम् ? अपेक्षाबुद्धिसमकालमेव परत्वाधारे कर्मोत्पद्यते । तेन कर्मणा दिपिण्डविभागः क्रियते । अपेक्षाबुद्धितः गुणों का सम्बन्ध इन सबों से (परत्वादि गुण से युक्त ) द्रव्यविषयक बुद्धि के उत्पादक कारणसमूह एकत्र हो जाते हैं। इतने सारे काम एक ही समय होते हैं। इसके बाद ( परत्वादि गुणविशिष्ट ) द्रव्य विषयक (विशिष्ट ) बुद्धि की उत्पत्ति और परत्वादि गुणों का विनाश ये दोनों काम एक ही समय होते हैं।
(२) (प्र०) केवल संयोग के विनाश से (परत्व और अपरत्व का विनाश) किस प्रकार होता है ? ( उ० ) ( जहाँ ) अपेक्षाबुद्धि की उत्पत्ति के समय ही परत्वादि गुणों के आधारभूत द्रव्य में क्रिया होती है, एवं उस क्रिया के द्वारा उस द्रव्य और दिक्प्रदेश इन दोनों का विभाग उत्पन्न होता है, और अपेक्षा
न्यायकन्दली विभक्तिकस्तसिलिति तसिल । एतस्मिन्नेव कालेऽपेक्षाबुद्धविनश्यत्ता विनाशकारणसान्निध्यम्। सामान्यतज्ज्ञानतत्सम्बन्धेभ्यः परत्वसामान्यं च, परत्वसामान्यज्ञानं च, परत्वगुणसम्बन्धश्च, तेभ्यः परत्वगुणबुद्धेरुत्पद्यमानतेत्येकः कालः। परत्वसामान्यज्ञानमेवापेक्षाबुद्धिविनाशकारणम्, गुणबुद्धश्चोत्पत्तिकारणम्, अतस्तदुत्पाद एवापेक्षाबुद्धविनश्यत्ता गुणबुद्धश्चोत्पद्यमानता स्यात् । ततः क्षणान्तरेऽपेक्षाबुद्धविनाशः, परत्वगुणबुद्धश्चोत्पादः। ततस्तस्मादपेक्षाबुद्धिविनाशाद् गुणस्य विनश्यत्ता। गुणश्च गुणज्ञानं च तत्सम्बन्धश्च तेभ्यो द्रव्यबुद्धरुत्पद्यमानतेत्येकः काल: । अपेक्षाबुद्धिविनाशो ( अर्थात् परत्व की उत्पत्ति हो जाने पर जिस समय परत्व गुण में रहने वाले सामान्य का ज्ञान होता है, उसके बाद ) अपेक्षा बुद्धि की 'विनश्यत्ता' अर्थात् विनाश के सभी कारणों का समावेश होता है। सामान्यतज्ज्ञानतत्सम्बन्धेभ्यः' (इस भाष्य सन्दर्भ का ) 'परत्वसामान्यच परत्वसामान्यज्ञानञ्च परत्वगुणसम्बन्धश्च तेभ्यः' इस व्युत्पत्ति के अनुसार यह अभिप्राय है कि परत्वसामान्य, एवं परत्वसामान्य का ज्ञान और परत्वगुण का सम्बन्ध, इन तीन कारणों से 'परत्वगुण की उत्पद्यमानता' अर्थात् परत्वगुण के उत्पादक सभी कारणों का संनिवेश होता है, ये सभी काम एक ही समय होते हैं । परत्वसामान्य का ज्ञान ही अपेक्षाबुद्धि के विनाश एवं गुणबुद्धि की उत्पत्ति इन दोनों का कारण है। अतः अपेक्षाबुद्धि की विनश्यत्ता और गुणबुद्धि की उत्पद्यमानता दोनों ही वस्तुतः परत् । सामान्य बुद्धि की उत्पत्ति स्वरूप ही है। इसके बाद दूसरे क्षण में अपेक्षाबुद्धि का विनाश होगा, एवं परत्वगुणबुद्धि की उत्पत्ति होगी। 'ततः'
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