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प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम्
३७१ प्रशस्तपादभाष्यम् करोति, तदारम्भकालातीतत्वात् । प्रदेशान्तरसंयोगं तु करोत्येव, उत्पत्ति नहीं होगी, जिससे विभाग की उत्पत्ति 'अनुपभोग्य' अर्थात् निष्प्रयोजन हो जाएगी। अवयव की क्रिया आकाशादि देशों से विभाग को उत्पन्न नहीं करती, क्योंकि उसके उत्पादन का काल ही बीत गया रहता है। किन्तु दूसरे प्रदेशों के साथ संयोग को अवश्य उत्पन्न करती है, क्योंकि
न्यायकन्दली जनने दृष्टसामर्थ्यामिमां परित्यज्यादृष्टसामर्थ्यस्य विभागस्य विभागहेतुत्वमाश्रीयते ? इत्यत्राह-न तु तदवयवकर्माकाशादिदेशाद् विभागं करोति, तदारम्भककालातीतत्वात् । एवं हि कर्मणः स्वभावो यत् तदसमवायिकारणतया विभागमारभमाणं स्वोत्पत्त्यनन्तरक्षण एवारभते, न क्षणान्तरे, स च तस्य विभागारम्भकालो द्वितीयभागोत्पत्तिकालेऽतीत इति न तस्मादस्योत्पत्तिः ।
नन्वेवमुत्तरसंयोगमपि कुतः करोति ? अनेकक्षणव्यवधानात्, अत आहप्रदेशान्तरसंयोगं करोतीति। यथा कर्मणः स्वोत्पादानन्तरक्षणो विभागारम्भकालस्तथा पूर्वसंयोगनिवृत्त्यनन्तरक्षणः प्रदेशान्तरसंयोगारम्भकालः, पूर्वदेशाव
एक ही समय ( अवयवों के परस्पर विभाग और अवयवों का आकाशादि देशो के साथ विभाग इन ) दोनों विभागों को उत्पन्न न भी कर सकें, फिर भी वे ही क्रियायें क्रमशः उन दोनों विभागों को उत्पन्न कर सकती हैं. इसमें तो कोई विरोध नहीं है। चूंकि जिस (क्रिया) में विभाग को उत्पन्न करने का सामर्थ्य उपलब्ध है, उसे छोड़कर जिस (विभाग ) में विभाग को उत्पन्न करने का सामर्थ्य दीख नहीं पड़ता है, उसमें विभाग की कारणता स्वीकार करते हैं ? इसी प्रश्न का उत्तर न तु तदवयवकर्माकाशादिदेशाद्विभागं करोति, तदारम्भकालातीतत्वात् इस वाक्य से दिया गया है। क्रिया का यह स्वभाव है कि जिस विभाग का वह असमवायिकारण होगी, उसे अपनी उत्पत्ति के अव्यवहित उत्तर क्षण में ही उत्पन्न करेगी, आगे के क्षणों में नहीं। वही ( उक्त अव्यवहितोत्तर) क्षण इसका आरभ्भकाल है । यह काल द्वितीय विभाग (विभागजविभाग) की उत्पत्ति के समय बीत जाता है, अतः क्रिया से इस (विभागजविभाग) की उत्पत्ति नहीं होती।
(अगर दोनों अवयवों की क्रिया का आरम्भकाल उसका अव्यवहित उत्तर क्षण हौ है तो फिर ) कुछ क्षणों के बाद वही क्रिया उत्तर संयोग को कैसे उत्पन्न करती है ? इसी प्रश्न का समाधान 'प्रदेशान्तरसंयोगं करोति' इस वाक्य से दिया है । अर्थात् जिस प्रकार क्रिया का अव्यवहित उत्तर क्षण विभाग के उत्पादन का उपयुक्त समय है, उसी प्रकार पूर्वसंयोग ( दोनों अवयवों के संयोग) के नाश का अव्यवहित उत्तर क्षण ही उस दूसरे प्रदेशों के साथ संयोग ( उत्तरसंयोग) के उत्पादन का
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