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সফল ]।
भाषानुवादसहितम्
३७९
प्रशस्तपादभाष्यम् रन्यतरस्य वा पृथग्गतिमच्चमियन्तु नित्यानाम्, अनित्यानां तु युतेष्वाश्रयेषु समवायो युतसिद्धिरिति । त्वगिन्द्रियशरीरयोः पृथग्गतिमत्त्वं नास्ति, युतेष्वाश्रयेषु समवायोऽस्तीति परस्परेण संयोगः दोनों में से एक की गतिशीलता नित्यों की युतसिद्धि है। पृथक् आश्रयों में समवाय का रहना अनित्यों की युतसिद्धि है। त्वगिन्द्रिय और शरीर दोनों यद्यपि स्वतन्त्र रूप से गतिशील नहीं हैं, फिर भी दोनों भिन्न आश्रयों में रहते हैं, अतः सिद्ध होता है कि शरीर और त्वगिन्द्रिय में संयोग (ही)
न्यायकन्दली परिहरति-नेति । युतसिद्धिप्रसङ्ग इति न, कुतः ? युतसिद्धेरपरिज्ञानात् । यादृशं युतसिद्धेर्लक्षणं तादृशं त्वया न ज्ञातमित्यर्थः। कीदृशं तस्या लक्षणं तत्राहसा पुनर्द्वयोरिति । द्वयोरेकस्य वा परस्परसंयोगविभागहेतुभूतकर्मसमवाययोग्यता युतसिद्धिः । द्वयोः परमाण्वोः पृथग्गमनमाकाशपरमाण्वोश्चान्यतरस्य पृथग्गमनमियं तु नित्यानाम् । तुशब्दोऽवधारणे, नित्यानामित्यस्मात् परो द्रष्टव्यः, नित्यानामेवेयं युतसिद्धिरित्यर्थः । अनित्यानां तु युतेष्वाश्रयेषु समवायो युतसिद्धिः । द्वयोरन्यतरस्य वा परस्परपरिहारेणान्यत्राश्रये समवायो युतसिद्धिरनित्यानां द्वयोः पृथगाश्रयायित्वं समवायः। शकुन्याकाशयो. चलना सिद्ध नहीं होगा, इस प्रकार अवयव और अवयवी दोनों में ( युतसिद्धि रूप ) स्वतन्त्रता की आपत्ति होगी।
'न' इत्यादि से इसका परिहार करते हैं। अर्थात् 'युतसिद्धि' की जो आपत्ति दी गई है, वह ठीक नहीं है. क्योंकि ( आपत्ति देनेवाले ) को युतसिद्धि' का यथार्थज्ञान नहीं है। अर्थात् युतसिद्धि का जो लक्षण है, उसका तुम्हें ज्ञान ही नहीं है। युतसिद्धि का क्या लक्षण है ? इस प्रश्न के उत्तर में 'सा पुनर्द्वयोः' इत्यादि सन्दर्भ लिखा गया है । अर्थात् परस्पर के संयोग और विभाग के प्रतियोगी और अनुयोगी दोनों में, या दोनों में से एक में, उक्त संयोग और विभाग के कारणीभूत क्रिया के समवाय की योग्यता ही 'युतसिद्धि' है। द्वयणुक समवाय के दोनों ही अनुयोगी ( दोनों ही परमाणु ) गतिशील हैं, आकाश और परमाणु इन दोनों में से एक गतिशील है । यह नित्यों की युतसिद्धि है (अतः दोनों परमाणुओं में या परमाणु और आकाश में संयोग ही होते हैं, समवाय नहीं, (क्योंकि समवाय अयुत सिद्धों में ही होता है ) । 'तु' शब्द अवधारण का बोधक है । अर्थात् युतसिद्धि का कथित लक्षण नित्य के युतसिद्ध का ही है । अनित्य युतसिद्धों के लिए युतसिद्धि का दूसरा लक्षण खोजना चाहिए । 'युत' आश्रयों में समवाय ही अनित्यों की युतसिद्धि है। अर्थात् दोनों का, अथवा दोनों में से एक का परस्पर एक को छोड़कर दूसरे आश्रय में समवाय ही ( अनित्यों की ) युतसिद्धि है। फलतः दोनों का अथवा दोनों में से एक का पृथक् आश्रयायित्व
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