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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [गुणे विभाग
प्रशस्तपादभाष्यम् अथवा अंश्वन्तरविभागोत्पत्तिसमकालं तस्मिन्नेव तन्तौ कर्मोत्पद्यते, ततोऽश्वन्तरविभागात् तन्त्वारम्भकसंयोगविनाशः, तन्तु
अथवा ( इस प्रकार से भी आश्रय के विनाश से विभाग का विनाश हो सकता है ) जिस समय ( तन्तु के उत्पादक एक अंशु का) दूसरे अंशु के साथ विभाग उत्पन्न होता है, उसी समय ( उन्हीं अंशुओं से आरब्ध ) उसी तन्तु में क्रिया उत्पन्न होती है । इसके बाद एक अंशु का दूसरे अंशु के विभाग से तन्तु के उत्पादक ( दोनों अंशुओं के ) संयोग का विनाश होता
न्यायकन्दली काशविभागः, एवं कर्मजादंशुतन्तुविभागात् तन्त्वाकाशविभाग इत्युदाहरणार्थः । हस्ताकाशविभागाच्छरीराकाशविभागो युक्तो न त्वमुल्याकाशविभागात्, अगुलेः शरीरं प्रत्यकारणत्वादिति चेत् ? हस्तोऽपि बाहोराश्रयो न शरीरस्य, कुतस्तद्विभागादपि शरीरविभागादपि शरीरविभागः । अथ समस्तावयवव्यापित्वाच्छरीरस्य हस्तोऽप्याश्रयः, एवमगुल्यप्याश्रयो हस्ता
गुल्याद्यवयवसमुदाये शरीरप्रत्यभिज्ञानात् । तस्मिस्तन्त्वाकाशविभागे जाते पूर्वसंयोगस्य प्रतिबन्धकस्य निवृत्तौ तन्तुसमवेतं कर्मोत्तरसंयोगं कृत्वा ततो विनश्यतीत्याह-तस्मिन्निति ।।
प्रकारान्तरेणाप्याश्रयविनाशाद् विनाशं कथयति-अथवेति । अंश्वन्तरविभागोत्पत्तिसमकालं तस्मिन्नेव तन्तौ विभज्यमानावयवे कर्मोत्पद्यते, आकाश का विभाग उत्पन्न होता है, उसी प्रकार क्रिपाजनित अंश और तन्तु के विभाग से तन्तु और आकाश का विभाग भी उत्पन्न होता है । (प्र०) शरीर और आकाश का विभाग तो हाथ और आकाश के विभाग से होना चाहिए, अंगुलि और आकाश के विभाग से नहीं, क्योंकि अंगुलि शरीर का कारण नहीं है। (उ.) हाथ भी तो बाँह का आश्रय ( अवयव ) है, शरीर का नही, तो फिर हाथ और आकाश के विभाग से ही शरीर और आकाश का विभाग कैसे उत्पन्न होगा? अगर शरीर सभी अवयवों में व्याप्त है, तो फिर हाथ की तरह अंगुलि भी शरीर का आश्रय है ही, क्योंकि हाथ अंगुलि प्रभृति सभी समुदायों में शरीर की प्रत्यभिज्ञा होती है। 'तस्मिन्' इत्यादि वाक्य के द्वारा यह कहा गया है कि तन्तु और आकाश के विभाग की उत्पत्ति हो जाने के बाद, प्रतिबन्धकीभूत पूर्वसंयोग के विनष्ट हो जाने पर, तन्तु में समवाय सम्बन्ध से रहनेवाली क्रिया उत्तर संयोग को उस्पन्न कर स्वयं भी विनष्ट हो जाती है।
'अथवा' इत्यादि सन्दर्भ के द्वारा आश्रय के नाश से विभागनाश की दूसरी रीति दिखलाई गई है। जहां दूसरे अंशु में विभाग की उत्पत्ति के समय ही विभक्त अवयव रूप उसी (अंशु विभाग के आश्रय ) तन्तु में क्रिया उत्पन्न होती है। इसके बाद विभाग
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