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प्रकरणम् ]
भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम् परत्वमपरत्वं च परापराभिधानप्रत्ययनिमित्तम् । तत्तु द्विविधं दिक्कृतं कालकृतं च। तत्र दिक्कृतं दिग्विशेषप्रत्यायकम् ।
___यह इससे पर ( दूर अथवा ज्येष्ठ ) है', 'यह इससे अपर ( समीप अथवा कनिष्ठ ) है' इन शब्दों के प्रयोगों और इन आकार के ज्ञानों का (असाधारण) कारण ही (क्रमशः ) परत्व और अपरत्व है (१) दिक्कृत ( दिशामूलक ) और (२) कालकृत ( कालमूलक ) भेद से वे दोनों ही दो-दो प्रकार के हैं। इनमें दिक्कृत ( परत्व और अपरत्व ) दिशाओं की
न्यायकन्दली तन्तुवीरणसंयोगस्याकाशवीरणसंयोगस्य च विनाशः, ततींऽशुसंयोगविनाशात् तन्तुविनाशो वीरणस्य चोत्तरसंयोगोऽत उत्तरसंयोगाश्रयविनाशाभ्यां तन्तुवीरणविभागस्य विनाश इति प्रक्रिया ॥
परत्वमपरत्वं च परापराभिधानप्रत्ययनिमित्तमिति । परमित्यभिधानस्य प्रत्ययस्य च निमित्तं परत्वम् । अपरमित्यभिधानप्रत्यययोनिमित्तमपरत्वमिति कार्येण सत्ता प्रतिपादयति ।
यद्यप्याकाशं कण्ठाद्याकाशसंयोगादिकं च परापराभिधानयोः कारणं भवति, यद्यप्यात्ममन:संयोगादिकं च परापरप्रतीतिकारणं स्यात्, तथापि निमित्तान्तरसिद्धिः, विशिष्टप्रत्ययस्य कारणविशेष
इसके बाद दोनों अंशुओं के विभाग से दोनों अंशुओं के ( तन्तु के उत्पादक ) संयोग का विनाश होता है। एवं वीरण के विभाग से तन्तु और वीरण के संयोग का, एवं आकाश और वीरण के संयोग का भी विनाश होता है। इसके बाद दोनों अंशुओं के संयोग के विनाश से तन्तु का विनाश होता है, एवं वीरण और उत्तरदेश, इन दोनों के संयोग की उत्पत्ति होती है। अतः उत्तरदेशसंयोग और आश्रय के विनाश इन दोनों से तन्तु और वीरण के विभाग का विनाश होता है।
'परत्वमपरत्वञ्च परापराभिधान प्रत्ययनिमित्तम्' इस सन्दर्भ के द्वारा यह उपपादन किया गया है कि 'यह इससे पर है' इत्यादि आकार के ज्ञान और शब्द के प्रयोग इन दोनों का कारणीभूत गुण ही 'परत्व' है, एवं 'यह इससे अपर है' इस आकार के ज्ञान और शब्द के प्रयोग, इन दोनों का कारणीभूत गुण ही 'अपरत्व' है । इस प्रकार कार्य से कारण के प्रतिपादन की रीति से परत्व और अपरत्व की सत्ता दिखलायी गयी है। यद्यपि यह पर है' एवं 'यह अपर हैं' इत्यादि शब्दों के प्रयोगों के आकाश, कण्ठ, एवं आकाश के संयोगादि भी कारण है, एवं उक्त आकार की प्रतीतियों के आत्मा एवं मन के संयोगादि भी करण हैं, फिर भी (ये सब सामान्य कारण हैं, उन विशिष्ट
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