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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम
स्वापरत्व
प्रशस्तपादभाष्यम् दिकप्रदेशेन संयोगात् परत्वस्योत्पत्तिः । तथा विप्रकृष्टं चावधिं कृत्वा एतस्मात् सनिकृष्टोऽयमित्यपरत्वाधारे इतरस्मिन् सन्निकृष्टा बुद्धिरुत्पद्यते । ततस्तामपेक्ष्यापरेण दिकप्रदेशेन संयोगादपरत्वस्योत्पत्तिः । प्रदेशों के संयोग के द्वारा ( दिक्कृत) परत्व विषयक बुद्धि की उत्पत्ति होता है। इसके बाद इसी परत्व विषयक को अवलम्बन बना कर दूर के दिक् प्रदशों के संयोग से दिक्कृत परत्व (गुण ) की उत्पत्ति होती है। इसी प्रकार दूर दिशा के द्रव्य को अवधि मानकर इससे यह समीप है' इस प्रकार का बुद्धि अपरत्व गुण के आधारभूत द्रव्य में उत्पन्न होती है। इसके बाद इस बुद्धि को अवलम्बन मानकर 'अपर' अर्थात् समीपवाले प्रदेशों के संयोग से दिक्कृत अपरत्व गुण की उत्पत्ति होती है।
न्यायकन्दली विप्रकृष्टबुद्धयुत्पत्त्यनन्तरं विप्रकृष्टां बुद्धिमपेक्ष्य परेण संयोगभूयस्त्ववता दिकप्रदेशेन संयोगादसमवायिझारणाद् विप्रकृष्टे पिण्डे समवायिकारणभूते परत्वस्योत्पत्तिः। द्रष्टुः स्वशरीरापेक्षया संयुक्तसंयोगभूयस्त्ववन्तं विप्रकृष्टं चावधि कृत्वेतरस्मिन् संयुक्तसंयोगाल्पीयस्त्ववति सन्निकृष्टा बुद्धिरुदेति। तां सन्निकृष्टां बुद्धि निमित्तकारणीकृत्यापरेण संयुक्तसंयोगाल्पीयस्त्वविशिष्टेन दिप्रदेशेन सह संयोगादसमवायिकारणात् सन्निकृष्टे पिण्डे समवायिकारणे परत्वस्योत्पत्तिः।
सन्निकृष्टविप्रकृष्टबुद्धयोः परस्परापेक्षित्वादुभयाभावप्रसङ्ग इति चेत् ? न, अनभ्युपगमातं । न सन्निकृष्टोऽयमित्येवं प्रतीत्यैव तदपेक्षया विप्रकृष्टबुद्धिः, अवधि मानकर बहुत से संयोगों से युक्त दूसरे देश की अपेक्षा परत्व की उत्पति उस पिण्ड (द्रव्य) में होती है। इस परत्व का उक्त द्रव्य समवायिकारण है, पिण्ड में रहनेवाले कथित संयोग उसके असमवायिकारण हैं। अर्थात् देखनेवाले को अपने शरीर की अपेक्षा अधिक संयोगवाले दूर देश के द्रव्य को अवधि मानकर उससे भिन्न, एवं उससे अल्प संयोगवाले देश के द्रव्य में 'सनिकृष्ट बुद्धि' अर्थात् 'इससे यह समीप है' इस आकार को थुद्धि उत्पन्न होती है। इस प्रकार समीप के पिण्ड में परत्व की उत्पत्ति का उक्त पिण्ड समवायिका : ण है, अल्प संयोग से युक्त दिक् प्रदेशों के साथ उक्त पिण्ड का संयोग निमित्तकारण है । एवं उक्त संनिकृष्टबुद्धि निमित्तकारण है।
(प्र.) किसी के संनिकृष्ट समझे जाने पर उसकी अपेक्षा कोई विप्रकृष्ट समझा जाता है। एवं किसी के विप्रकृप्ट समझे जाने पर ही उसकी अपेक्षा कोई संनिकृष्ट समझा जाता है । इन प्रकार दोनों बुद्धियाँ अगर परस्पर सापेक्ष हैं, तो फिर
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