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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम्
[गुणे परत्वापरत्व
प्रशस्तपादभाष्यम् द्रष्टुयुवानमवधिं कृत्वा स्थविरे विप्रकृष्टा बुद्धिरुत्पद्यते । ततस्तामपेक्ष्य परेण काल प्रदेशेन संयोगात् परत्वस्योत्पत्तिः, स्थविरं चावधिं कृत्वा यूनि सनिकृष्टा बुद्धिरुत्पद्यते। ततस्तामपेक्ष्यापरेण कालप्रदेशेन संयोगादपरत्वस्योत्पत्तिरिति । हुए केश और शरीर की शिथिलता ( प्रभृति ) की स्थिति, इन दोनों स्थितियों के रहते हुए दोनों को देखनेवाले पुरुष को उक्त युवा पुरुष की अपेक्षा उक्त वृद्ध पुरुष में 'विप्रकृष्ट' वुद्धि अर्थात् कालकृत परत्व (ज्येष्ठत्व ) की बुद्धि उत्पन्न होती है। इसके बाद इसी बुद्धि के साहाय्य से दूसरे कालप्रदेश के साथ के संयोग से ( वृद्ध पुरुष ) में कालकृत परत्व ( ज्येष्ठत्व ) की उत्पत्ति होती है। एवं इसी वृद्ध पुरुष की अपेक्षा युवा पुरुष में संनिकृष्ट' बुद्धि उत्पन्न होती है। इसी बुद्धि के साहाय्य से दूसरे कालप्रदेश के साथ ( युवा) पुरुष के संयोग से कालकृत अपरत्व ( कनिष्ठत्व ) की उत्पत्ति होती है।
न्यायकन्दली कथिता, कालकृतयोरपि तयोरुत्पत्तिः कथमिति प्रश्नः। समाधान वर्तमानकालयोरिति । द्वयोरेकस्मिन् वा पिण्डेऽविद्यमाने परत्वापरत्वे न भवतः, तदर्थं वर्तमानकालयोरित्युक्तम्। अनियतदिग्देशयोरित्येकदिश्यवस्थितयोभिन्नदिगवस्थितयोर्वा युवस्थविरयो रूढश्मश्रु च कार्कश्यं च बलिश्च पलितं च चेषां कालविप्रकर्षलिङ्गानां सान्निध्ये सत्येकस्य द्रष्टुर्युवानं रूढ
अपरत्व की उत्पत्ति किस प्रकार होती है ? इसी प्रश्न का समाधान 'वर्तमानकालयोः' इत्यादि सन्दर्भ के द्वारा किया गया है। इस समाधान वाक्य में 'वर्तमानकालयोः' यह पद इस लिए दिया गया है कि चूंकि दोनों ही पिण्डो के न रहने पर, या दोनों में से किसी एक के न रहने पर भी (उनमें से किसी में ) परत्व या अपरत्व की उत्पत्ति नहीं होती है। 'अनियतदिग्देशयोः' अर्थात् एक दिशा में अथवा विभिन्न दिशाओं में स्थित्त युवक और वृद्ध पुरुष में ( से युवा पुरुष में रहनेवाले) मूछों का कड़ापन और देह का कड़ा गठन एवं ( वृद्ध पुरुष की ) झुर्रा और पके केश प्रभृति काल के ज्ञापक हेतुओं का सामीप्य रहने पर दोनों को देखने वाले किसी एक पुरुष को मूछों की कड़ाई और देह के काठिन्य से युवा पुरुष में अल्पकाल मम्बन्धरूप कनिष्ठत्व या संनिकृष्टबुद्धि रूप ज्येष्ठत्व की अनुमिति होती है। इस अल्पकाल को अवधि मानकर झुर्रा और पके केश वाले वृद्ध पुरुष में अधिककाल सम्बन्ध रूप ज्येष्ठत्व या काल विप्रकृष्टत्व की वृद्धि उत्पन्न होती है। इस प्रकार उस वृद्ध पुरुष में कालिक परत्व (ज्येष्ठत्व) की उत्पत्ति
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