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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [गुणे परत्वापरत्व
प्रशस्तपादभाष्यम् कालकृतं च वयोभेदप्रत्यायकम् । तत्र दिक्कृतस्योत्पत्तिरभिधीयते । कथम् ? एकस्यां दिश्यवस्थितयोः पिण्डयोः संयुक्त संयोगवह्वल्पविशिष्टिता को समझाते हैं। एवं कालकृत ( परत्व और अवरत्व वस्तुओं के ) वयस् के भेद को समझाते हैं। इनमें दिक्कृत ( परत्व और अपरत्व ) की उत्पत्ति बतलाते हैं। (प्र०) किस प्रकार ( इनकी उत्पत्ति होती है ? ) ( उ० ) एक दिशा में अवस्थित दो कार्य द्रव्यों में ( इन द्रव्यों के आश्रयीभूत प्रदेश के साथ ) संयुक्त (प्रदेशों के ) संयोग की अधिकता और अल्पता
न्यायकन्दली मन्तरेणोत्पत्त्यभावात् । एकत्र द्वयोरुपन्यासस्तयोरितरेतरसापेक्षत्वात् । तद् द्विविधम्', 'तत्' परत्वमपरत्वं च 'द्विविधम्' द्विप्रकारमिति भेदनिरूपणम् । किंकृतस्तयोभैद इत्याशय कारणभेदाद् भेदमाह-दिक्कृतं कालकृतं चेति । दिक्पिण्डसंयोगकृतं दिक्कृतम्। कालपिण्डसंयोगकृतं कालकृतम्। अनयोर्भेदः कुतः प्रत्येतव्यः ? कार्यभेदादित्याह-दिक्कृतं दिग्विशेषप्रत्यायकम, कालकृतं तु वयोभेदप्रत्यायकम्। दिक्कृतं परत्वं देशविप्रकृष्टत्वं प्रत्याययति, अपरत्वं च देशसन्निकृष्टत्वम् । कालकृतं तु परत्वं पिण्डस्य कालविप्रकृष्टत्वं प्रतिपादयति, अपरत्वं च शब्द प्रयोगों के एवं उक्त प्रतीतियों के लिए विशेष कारणों की सिद्धि आवश्यक है, क्योंकि विशेष कारण के बिना विशेष प्रकार के शब्दों का प्रयोग, या विशेष प्रकार की प्रतीतियाँ नहीं हो सकतीं। चूंकि परत्व और अपरत्व दोनों ही परस्पर सापेक्ष हैं, अतः दोनों का एक साथ निरूपण किया गया है ।
'द्विविधं तत्' यह वाक्य उनके भेद को दिखलाने के लिए लिखा गया है । किस हेतु से दोनों में भेद है ? यह प्रश्न करके कारण के भेद से उनका भेद दिक्कृतं कालकृतञ्च' इत्यादि से दिखलाया गया है । दिक्कृत (परत्व और अपरत्व) काल और पिण्ड (अर्थात् परत्वादि के आश्रयीभूत द्रव्य) के संयोग से होता है । इसी प्रकार काल और पिण्ड के संयोग से 'कालकृत परत्व और अपरत्व' उत्पन्न होता है । इन दोनों का भेद किससे समझेंगे? इसी प्रश्न का उत्तर 'दिक्कृतम्' इत्यादि से देते हैं कि कार्य की विभिन्नता से ही उन दोनों का भेद समझेंगे । विशेष प्रकार की दिशा के ज्ञान का कारण ही दिक्कृत परत्व और अपरत्व है । एवं वय के भेद के ज्ञान का कारण ही काल कृत 'परत्वापरत्व' है। अर्थात् दिक्कृत (परत्व और अपरत्व) दिशा विशेष की प्रतीति के कारण हैं । एवं कालकृत (परत्व और अपरत्व ) वयो भेद के ज्ञान के कारण हैं। इनमें 'दिक्कृत परत्व' देश विप्रकृष्टत्व अर्थात् देश की दूरी का ज्ञापक है। 'दिक्कृत अपरत्व' देश के सामीप्य का बोधक है। एवं 'कालकृत परत्व' पिण्ड (आश्रयभूत द्रव्य) के कालविप्रकृष्टत्व अर्थात् ज्येष्ठत्व का
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