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प्रकरणम् ]
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भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम्
कर्मणा च तन्त्वन्तराद् विभागः क्रियते इत्येकः कालः । ततः संयोगविनाशात् तन्तु विनाशः तद्विनाशाच्च तदाश्रितयोर्विभागकर्मणो
युगपद्विनाश: ।
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है और तन्तु की क्रिया से एक तन्तु का दूसरे तन्तु क साथ विभाग उत्पन्न होता है । इतने काम एक समय में होते हैं । इसके बाद कथित दोनों अंशुओं के विभाग के द्वारा उत्पन्न दोनों अंशुओं के संयोग के विनाश से तन्तु का विनाश होता है, एवं तन्तु के विनाश से उसमें रहनेवाले विभाग और क्रिया, इन दोनों का एक ही समय विनाश हो जाता है । अत: इस पक्ष में क्रिया में चिरकालस्थायित्व की आपत्ति भी नहीं है ।
न्यायकन्दली
ततो विभागात् तत्त्वारम्भकस्यांशु संयोगस्य विनाशः, तन्तुकर्मणा च तस्य तन्तोस्तन्त्वन्तराद् विभाग इत्येकः कालः । तदनन्तरं संयोगस्य विनाशात् तदारब्धस्य तन्तोविनाशः तद्विनाशाच्च तदाश्रितयोविभाग कर्मणोर्युगपद्विनाशः । यच्च नित्यसमवेतस्य नित्यत्वमिति चोदितम्, तत्र प्रतिसमाधानं नोक्तम्, तस्यात्यन्तमसङ्गतार्थत्वात् । कार्याविष्टे हि कारणे कर्मोत्पन्नमवयवान्तरविभागसमकालमाकाशादिदेशेन समं विभागं न करोति, आकाशादिविभागकर्तृ - त्वस्य द्रव्यारम्भकसंयोग विरोधिविभागोत्पादकत्वस्य च विरोधात् । अनारम्भके तु द्वचणुकसंयोगिनि परमाणौ कर्म द्वद्यणुक विभागसमकालं तस्याकारादेशेन
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के द्वारा तन्तु के उत्पादक अंशु के संयोग का विनाश होता है, एवं तन्तु की क्रिया से उस तन्तु का दूसरे तन्तु से विभाग उत्पन्न होता है । इतने काम एक समय में होते हैं । इसके बाद संयोग के विनाश से उस संयोग के द्वारा उत्पन्न तन्तु का विनाश होता है । तन्तु के विनष्ट हो जाने से उसमें रहनेवाले विभाग और कर्म दोनों ही एक ही समय नष्ट हो जाते हैं । नित्य द्रव्य में रहनेवाले कर्म में नित्यत्व की जो शङ्का की गई है, उसका उत्तर इस कारण से नहीं दिया गया, चूँकि वह अत्यन्त ही निःसार है । कार्य के साथ सम्बद्ध कारण में उत्पन्न हुई क्रिया दूसरे अवयव के साथ विभाग के उत्पत्तिक्षण में आकाशादि देशों के साथ ( अपने आश्रय के ) विभाग को नहीं उत्पन्न करती, क्योंकि आकाशादि देशों के साथ विभाग का कर्तत्व एवं द्रव्य के उत्पादक संयोग के विभाग का कर्त्तत्व, ये दोनों धर्म परस्पर विरुद्ध हैं ( अतः एक समय एक आश्रय में दोनों नहीं रह सकते ) द्वणुक के संयोग से युक्त ( उस द्वयणुक के ) अनुत्पादक परमाणु में ( विद्यमान ) क्रिया द्वयणुक उत्पत्ति के समय ही आकाशादि देशों के साथ भी विभाग
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