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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम [गुणे विभाग
प्रशस्तपादभाष्यम् क्वचिच्चाश्रयविनाशादेव विनश्यतीति । कथम् ? यदा द्वितन्तुककारणावयवे अंशो कर्मोत्पन्नमंश्वन्तराद् विभागमारभते तदैव तन्त्वन्तरेऽपि कर्मोत्पद्यते, विभागाच्च तन्त्वारम्भकसंयोगविनाशः, तन्तुकर्मणा तन्त्वन्तराद् विभागः क्रियत इत्येकः कालः । ततो यस्मिन्नेव काले विभागात् तन्तुसंयोगविनाशः, तस्मिन्नेव काले संयोगविनाशात् तन्तुविनाशस्तस्मिन् विनष्टे तदाश्रितस्य तन्त्वन्तरविभागस्य विनाश कहीं आश्रय के विनाश से भी विभाग का नाश होता है । (प्र० ) किस प्रकार ? ( आश्रय के नाश से विभाग का नाश होता है ? ) ( उ० ) ( जहाँ ) जिस समय दो तन्तुओं से बने हुए पट के कारणीभूत एक तन्तु के अवयवरूप एक अंशू में उत्पन्न हुई क्रिया दूसरे अंशु से विभाग को उत्पन्न करती है, उसी समय उक्त पट के अवयवरूप दूसरे तन्तु में भी क्रिया उत्पन्न होती है, इस विभाग से दोनों तन्तुओं के उत्पादक अंशुओं में रहनेवाले संयोग का नाश होता है। एवं तन्तु की क्रिया से इस तन्तु का दूसरे तन्तु से विभाग उत्पन्न होता है। इतने काम एक समय में होते हैं। इसके बाद जिस समय दोनों तन्तुओं के विभाग से ( पट के आरम्भक दोनों ) तन्तुओं के संयोग का नाश होता है उसी समय ( अंशुओं के) संयोग के विनाश से तन्तु का भी विनाश होता है। तन्तु का विनाश हो जानेपर उसमें
न्यायकन्दली
क्वचिदाश्रयविनाशादपि विनाशः । कथमित्यज्ञस्य प्रश्नः। उत्तरम्यदेति । द्वितन्तुककारणस्य तन्तोरवयवे अंशो कर्मोत्पन्नमंश्वन्तरस्यांशोविभागमारभते यदा, तदैव तन्त्वन्तरेऽपि कर्म, विभागाच्चांशोस्तन्त्वारम्भकसंयोगविनाशो यदा, तदा तन्तुकर्मणा तन्त्वन्तराद् विभागः क्रियत इत्येकः कालः ।
की प्रतीतियाँ चिरकाल तक नहीं होती रहतीं, अतः संयोग से ही विभाग का नाश होता है। 'तस्मात्' इत्यादि वाक्य से इस प्रसङ्ग का उपसंहार करते हैं ।
'कहीं आश्रय के विनाश से भी { विभाग का) विनाश होता है'। 'कथम्' इत्यादि वाक्य से इस विषय में अनभिज्ञ का प्रश्न सूचित किया गया है, और 'यदा' इत्यादि से इसी प्रश्न का उत्तर दिया गया है। जहाँ दो तन्तुओं से निष्पन्न पट के अवयवीभूत एक तन्तु के समवायिकारण अंशु में उत्पन्न हुई क्रिया जिस समय उस अंशु का दूसरे अंशु से विभाग को उत्पन्न करती है, उसी समय दूसरे तन्तु में भी क्रिया
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