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न्यायकन्दलीसंवलित प्रशस्तपादभाष्यम्
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( गुणे विभाग
प्रशस्तपादभाष्यम्
कर्मणश्चिरकालावस्थायित्वं नित्यद्रव्यसमवेतस्य च नित्यत्वमिति दोषः । कथम् ? यदाप्यद्व्यणुकारम्भकपरमाणौ कर्मोत्पन्नमण्वन्तराद्
( विभागज ) विभाग के कारणीभूत दोनों तन्तुओं का विभाग विनष्ट हो चुका है। इससे (१) जहाँ आश्रय के नाश से विभाग उत्पन्न होगा, उस विभाग के अवधिभूत अनित्य द्रव्य में रहनेवाली क्रिया चिरकालस्थायिनी होगी ( तीन क्षणों से अधिक समय तक रहेगी ) ( २ ) एवं नित्य द्रव्य में रहनेवाली क्रिया तो नित्य ही हो जाएगी, क्योंकि ( उक्त उत्तरदेश विभागरूप विभागज विभाग के उत्पन्न न होने के कारण तन्तु का उत्तरदेश के साथ संयोग रहेगा ही, एवं ) एक प्रदेश में एक संयोग के रहते दूसरे संयोग की उत्पत्ति नहीं हो सकती, अतः क्रिया के विरोधी ( दूसरे )
न्यायकन्दली
प्रतिबन्धकस्यानिवृत्तेः प्रदेशान्तरेण सह संयोगो न भवति, अतः कारणाद् विरोधिनो गुणस्योत्तरसंयोगस्याभावात् कर्मणः कालान्तरावस्थायित्वं स्यात्, यावदाश्रयविनाशो विनाशहेतुर्नोपनिपतति - नित्यद्रव्यसमवेतस्य नित्यत्वमिति दोषः । कथमिति प्रश्नः । उत्तरमाह - यदेति । आप्यद्व्यणुकस्यारम्भके परमाणौ कर्मोत्पन्नमण्वन्तराद् विभागं करोति यदा तदैव द्वयणुकसंयोगिन्यकर्म । ततो यस्मिन्नेव काले परमाणु संयोग
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नारम्भकपरमाण्वन्तरेऽपि
और आकाश के संयोग की भी निवृत्ति नहीं होगी, जो कि पूर्ववर्ती संयोग का प्रतिबन्धक है । जिससे दूसरे प्रदेशों का संयोग रुक जाएगा । अतः विरोधी संयोग रूप गुण के न रहने से क्रिया में से स्थायित्व की आपत्ति होगी । क्योंकि ( उत्तरदेश संयोग को छोड़कर केवल ) आश्रय का विनाश ही क्रिया के नाश का कारण है, सो जबतक नहीं होता, तब तक क्रिया की सत्ता रहेगी ही । फलतः, नित्यद्रव्यों (परमाणुओं) में समवाय सम्बन्ध से रहनेवाली क्रिया नित्य हो जाएगी । उक्त क्रिया के आश्रय परमाणु नित्य होने के कारण विनष्ट नहीं हो सकते, अतः विभागज विभाग के न मानने से किया में नित्यत्व रूप दोष को आपत्ति होगी । 'कथम्' यह पद प्रश्न का बोधक है। 'यदा' इत्यादि सन्दर्भ के द्वारा इसी प्रश्न का उत्तर दिया गया है । जिस समय जलीय द्वयणुक के एक परमाणु में उत्पन्न हुई क्रिया, उसका दूसरे जलीय परमाणु के साथ विभाग को उत्पन्न करती है, उसी समय दूसरे परमाणु में भी क्रिया उत्पन्न होती है, जो जलीय द्वणुक का उत्पादक तो नहीं है, किन्तु उसमें जलीय द्वघणुक का संयोग है । इसके बाद जिस समय (जलीय दोनों) परमाणुओं के संयोग के विनाश से, उन परमाणुओं