________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
प्रकरणम् ] भाषानुवादसहितम्
३७३ प्रशस्तपादभाष्यम मवयवान्तराद् विभागमकुर्वदाकाशादिदेशेभ्यो विभागानारभ्य प्रदेशान्तरे संयोगानारभते, तदा ते कारणाकारणविभागाः, कर्म यां दिशं प्रति कार्यारम्भाभिमुखं तामपेक्ष्य कार्याकार्यविभागानारभन्ते तदनन्तरं कारणाकारणसंयोगाच्च कार्याकार्यसंयोगानिति । हुई क्रिया शरीर के दूसरे अवयवों से विभाग को उत्पन्न करती हुई आकाशादि देशों के साथ विभागों को उत्पन्न करने के बाद ( उत्तर देश) संयोगों को उत्पन्न करती है, उस समय के वे विभाग (शरीर के) कारण (अवयव ) और ( शरीर के) अकारण के विभाग हैं। क्रिया जिस दिशा में ( उत्तरसंयोगरूप ) कार्य को करने के लिए उत्सुक रहती है, उसी दिशा के साहाय्य से वे ( कारण और अकारण के विभाग ) कार्य और अकार्य के विभागों को उत्पन्न करते हैं । इसके बाद (वे ही कारण और अकारण के विभाग ) कारणों और अकारणों के संयोगों के साहाय्य से उन कारणों से उत्पन्न कार्य द्रव्यों और उनसे अनुत्पन्न अकार्य द्रव्यों में संयोगों को उत्पन्न करते हैं।
न्यायकन्दली उत्तरमाह-यदेत्यादिना । हस्ते कुतश्चित् कारणात् कर्मोत्पन्नं तस्य हस्तस्यावयवान्तराद् विभागमकुर्वदाकाशादिदेशेभ्यो विभागानारभ्य प्रदेशान्तरैः सह यदा संयोगानारभते तदा ते कारणाकारणविभागा: शरीरकारणस्य हस्तस्याकारणानामाकाशादिदेशानां विभागाः, कर्म च यस्यां दिशि कार्यारम्भाभिमुखं कर्मणा यत्रोत्तरसंयोगो जनयितव्यः, तां दिशमपेक्ष्य, कार्याकार्यविभागान् हस्तकार्यस्य शरीरस्याकार्याणामाकाशादिदेशानां विभागानारभन्ते । यतः कुड्यादिदेशाद्धस्तस्य विभागः, ततः शरीरस्यापि विभागो दृश्यते । न चायं शरीरक्रियाकार्यः, द्वारा प्रश्न किया गया है। 'यदा' इत्यादि सन्दर्भ से उक्त प्रश्न का उत्तर देते हैं । हाथ में जिस किसी कारण से उत्पन्न हुई क्रिया शरीर के अवयवों में विभागों को उत्पन्न न कर, जिस समय हाथ में आकाशादि (पूर्व) देशों के साथ विभागों को उत्पन्न कर. उत्तर प्रदेशो के साथ हाथ के संयोग का उत्पादन करती है, उस समय के वे ( हाथ का आकाशादि पूर्व देशों से ) विभाग 'कारणाकारणविभाग' हैं, अर्थात् शरीर के 'कारण' हाथ और 'अकारणीभूत' आकाशादि प्रदेश, इन दोनों के विभाग हैं। क्रिया जिस दिशा में कार्य को उत्पन्न करने को उत्सुक रहती है, अर्थात् क्रिया से जिस देश में उत्तर संयोग उत्पन्न होता है, उस दिशा के साहाय्य से ही क्रिया, कार्य
और अकार्य के, अर्थात् हाथ के कार्य शरीर का उसके अकार्य आकाशादि प्रदेशों के साथ विभागों को उत्पन्न करती है। चूंकि दीवाल प्रभृति देशों से हाथ का विभाग होने पर
For Private And Personal