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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम्
प्रशस्तपादभाष्यम
प्राप्तिपूर्विका प्राप्तिर्विभागः । स च त्रिविधः - अन्यतरकर्मजः, उभयकर्मज:, विभागजश्च विभाग इति । तत्रान्यतरकर्मजोमय कर्मजौ बाद उत्पन्न अप्राप्ति का नाम ही 'विभाग ' है । वह ( १ ) अन्यतरकर्मज, (२) उभयकर्मज और (३) विभागज विभाग भेद से तीन प्रकार का है । इनमें अन्यतरकर्मज विभाग और उभयकर्मज विभाग इन दोनों की सभी बातें
न्यायकन्दली
[ गुणे विभाग
भाक्तः प्रत्ययोऽयमिति चेत् ? तहिं विभागस्याप्रत्याख्यानम्, निष्प्रधानस्य भाक्तस्याभावात् ।
तस्य कार्यं दर्शयति- शब्दविभागहेतुश्चेति । न केवलं विभक्तप्रत्ययनिमित्तं शब्दविभागहेतुश्चेति चार्थः । वंशदले पाट्यमाने योऽयमाद्यः स तावद् गुणान्तरनिमित्तः शब्दत्वात्, भेरीदण्डसंयोगजशब्दवत् । न चायं संयोगजः, तस्याभावात् । तस्माद् वंशदलमिभागज एवायम्, तद्भावभावित्वात् । विभागस्य विभागहेतुत्वं चानन्तरं वक्ष्यामः ।
शब्दः,
प्राप्ति पूर्विका प्राप्तिरिति तस्य लक्षणकथनम् । अधर्म इति नञ् यथा धर्मविरोधिनि गुणान्तरे, न तु धर्माभावे, तथा अप्राप्तिरिति नञ् प्राप्तिविरोधिनि गुणान्तरे, न तु प्राप्तेरभावे । प्राप्तौ पूर्वस्थितायां याऽप्राप्तिः ('ये दोनों विभक्त हैं' इत्यादि) प्रतीतियाँ तो गोण हैं ? ( उ० ) इस गोणता की प्रतीति से भी विभाग का मानना आवश्यक है, क्योकि प्रधान के बिना गोण नहीं होता है । 'शब्दविभागहेतुश्च' इस वाक्य से विभाग के द्वारा उत्पन्न होने वाले कार्य दिखलाये गये हैं । उक्त वाक्य में प्रयुक्त 'च' शब्द से यह सूचित होता है कि विभाग केवल विभक्त प्रत्यय का ही कारण नहीं है, किन्तु शब्द और ( विभागज ) विभाग का भी कारण है । ( 'विभाग से शब्द उत्पन्न होता हैं' इसमें यह अनुमान प्रमाण है कि ) जिस प्रकार भेरी और दण्ड के संयोग से उत्पन्न शब्द का शब्द से भिन्न उक्त संयोग कारण है, उसी प्रकार बाँस का दो भाग करने पर जो पहिला शब्द होता है, उसका भी स्व ( शब्द ) से भिन्न कोई दूसरा ही गुण कारण है । एवं इस शब्द का ( भेरी के उक्त शब्द की तरह ) संयोग भी कारण नहीं है अतः चूंकि बाँस के दोनों दलों की सत्ता के बाद ही उक्त शब्द की उत्पत्ति होती है, अतः बांस के दोनों दलों का विभाग ही उस शब्द का कारण है। विभाग से ( दूसरे) विभाग की उत्पत्ति का विवरण हम आगे देंगे ।
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'प्रातिपूर्विकाप्राप्ति:' इस वाक्य से विभाग का लक्षण कहा गया है। जिस प्रकार 'अधर्म' शब्द में प्रयुक्त नन् शब्द धर्म के विरोधी पाप रूप दूसरे गुण का बोधक है, उसी प्रकार प्रकृत 'अप्राप्ति' शब्द में प्रयुक्त 'नन्' शब्द भी प्राप्ति ( संयोग ) रूप