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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [गुणे संयोग
प्रशस्तपादभाष्यम् यथा मल्लयोर्मेषयोर्वा । संयोगजस्तूत्पन्नमात्रस्य चिरोत्पन्नस्य वा निष्क्रियस्य कारणसंयोगिभिरकारणैः कारणाकारणसंयोगपूर्वका संयोग, अथवा (लड़ते हुए दो) भेड़ों का संयोग। (३) उत्पन्न होते ही या उत्पन्न होने के बहुत बाद किसी निष्क्रिय द्रव्य का अपने अवयवों के संयोग से युक्त अपने अकारणीभूत द्रव्यों के साथ जो संयोग होता है, वह 'संयोगजसंयोग' है, (इस संयोगजसंयोग की उत्पति कारण और अकारण के
न्यायकन्दली वक्तव्यः, त्यक्तव्यं वावयविकर्मणः संयोगविभागयोरनपेक्षकारणं कर्मेति कर्मलक्षणमिति । दुरक्षरदुर्विदग्धानां युक्तिमाचार्यवचनं चोत्सृजतामन्धानामिव पदे पदे कियत् स्खलितं दर्शयिष्यामः ।
उभयकर्मजो विरुद्ध दिक्रिययोः सन्निपातः । याभ्यां दिग्भ्यां द्वयोः परस्परमागच्छतोरन्योन्यप्रतीघातो भवति ते विरुद्ध दिशौ, यथा प्राचीप्रतीच्यौ दक्षिणोदीच्याविति । विरुद्धयोदिशोः क्रिया ययोर्द्रव्ययोस्ते विरुद्धदिक्रिये, तयोः सन्निपात उभयकर्मजः संयोगः, प्रत्येकमन्यत्र द्वयोरपि सामर्थ्यावधारणात् । यथा मल्लयोमषयोवत्युदाहरणम् । संयोगजस्तु संयोग उत्पन्नमात्रस्य चिरोत्पन्नस्य वा निष्क्रियस्य कारणसंयोगिभिरकारणैः कारणाकारणसंयोगपूर्वक: कार्याकार्यगतः ।
न्यायमा
संयोग का ही लोप हो जाएगा। (अन्त में) इससे यही कहना पड़ेगा कि अवयवियों में क्रिया होती ही नहीं है । या फिर अवयवियों में रहनेवाले कर्म के लिए कर्म सामान्य के इस लक्षण को ही छोड़िए कि 'संयोग और विभाग का निरपेक्ष कारण ही कर्म है।' ( फलतः अवयवी में रहनेवाले कर्म के लिए दूसरा लक्षण करिए ) । इस प्रकार आचार्य के वचनों को छोड़नेवाले मूखों के पद पद पर गिरनेवाले अन्धों की तरह कितने स्खलनों को हम दिखलावें ?
'उभयकर्मजो विरुद्धदिक्रिययोः संनिपातः' जिन दो दिशाओं से आते हुए दो व्यक्तियों में संघर्ष हो सके वे दोनों दिशाएँ परस्पर विरुद्ध हैं, जैसे कि पूर्व और पश्चिम एवं दक्षिण और उत्तर । विरुद्धयोदिशोः क्रिया ययो,व्ययोस्ते विरुवदिविक्रये, तयोः संनिपात उभयकर्मजः संयोगः' इस व्युत्पत्ति के अनुसार विरुद्ध दो दिशाओं में रहनेवाली क्रियाओं से युक्त दो द्रव्य ही द्विवचनान्त प्रकृत 'विरुद्धदिक्क्रिये' शब्द के अर्थ हैं । इन दोनों द्रव्यों का संयोग ही 'उभयकर्मज' संयोग है, क्योंकि दोनों क्रियाओं में से प्रत्येक में संयोग के उत्पादन का सामर्थ्य और स्थलों में देखा जाता है । 'यथा मल्लयोर्मेषयोर्वा' यह वाक्य उभयकर्मज संयोग के उदाहरण को समझाने के लिए है। 'संयोगजस्तु संयोग उत्पन्नमात्रस्य' इत्यादि वाक्य में प्रयुक्त 'कारण' शब्द से समवायिकारण और 'अकारण'
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