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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [गुणे संयोग
प्रशस्तपादभाष्यम् सम्बन्धः ? तयोरपि संयोगजाम्यां संयोगाभ्यां सम्बन्ध इति । नास्त्यजः संयोगो नित्यापरिमण्डलवत्, पृथगनभिधानात् । यथा चतुर्विधं परिमाणमुत्पाद्यमुक्त्वाह नित्यं परिमण्डलमित्येवमन्यतरकर्मजाकिस कारण से उत्पन्न होता है ? ( उ० ) इन दोनों द्वयणुकों में भी दोनों संयोगज' संयोगों से ही उक्त संयोग की उत्पत्ति होती है। अनुत्पत्तिशील संयोग कोई है ही नहीं। क्योंकि सूत्रकार ने नित्य परिमण्डल ( नित्य अणुपरिमाण ) की तरह नित्य संयोग का उल्लेख नहीं किया है, अर्थात सूत्रकार ने जिस प्रकार उत्पत्तिशील चार परमाणुओं के उल्लेख के बाद 'नित्यं परिमण्डलम्' इत्यादि से नित्य अणुपरिमाण का उल्लेख किया है,
न्यायकन्दली सम्बद्धस्याप्यद्वयणुकस्यापि स्वकीयाकारणेन पार्थिवद्वयणुककारणेन पार्थिव. परमाणुना सम्बद्धस्य कथं सम्बन्धः ? इति पृच्छति । उत्तरमाह-तयोरपीति । पार्थिवद्वयणुकस्याप्येन परमाणुना यः संयोगजः संयोगो यश्चाप्यद्वयणुकस्य पार्थिवपरमाणुना संयोगजः संयोगस्ताभ्यां पार्थिवाप्यपरमाणुसंयोगाभ्यां द्वयणुकयोः परस्परसंयोगः । अत्रापि पूर्वोक्त एव न्यायः, कारणसंयोगिना अकारणेन संयोगि कार्यमिति । संयुक्त होता है, क्योंकि उसके कारणीभूत पार्थिव परमाणु के साथ जलीय परमाणु संयुक्त है । इसी तरह जलीय द्वथणुक भी अपने कारणीभूत जलीय परमाणु से संयुक्त पार्थिव परमाणु के साथ संयुक्त होता है। (प्र०) इतरेतर कारणों और अकारणों में परस्पर असम्बद्ध पार्थिव द्वथणुक और जलीय द्वयणुकों में परस्पर संयोग कैसे होता है ? अर्थात् यह पूछते हैं कि पार्थिव द्वषणुक अपने अकारणीभूत और जलीय द्वयणुक के कारणीभूत जलीय परमाणु के साथ संयक्त है, एवं जलीय द्वथणक अपने अकारणीभूत और पार्थिव द्वथणक के कारणीभूत पार्थिव परमाणु के साथ संयुक्त है, फिर इससे पार्थिव और जलीय दोनों द्वयणुकों में परस्पर संयोग कैसे होता है ? 'तयोः' इत्यादि से इसी प्रश्न का उत्तर देते हैं । अमिप्राय यह है कि पार्थिव द्वथणुक का जलीय परमाणु के साथ जो संयोगज संयोग है, एवं जलीय द्वयणुक का पार्थिव परमाण क साथ जो संयोगज सयोग है. इन दोनों संयोगज संयोगों से ही कथित पार्थिव द्वथणुक और जलीय द्वथणुक इन दोनों में परस्पर संयोग की उत्पत्ति होती है । इस संयोग क प्रसङ्ग में भी पूर्व कथित वही न्याय लागू होता है कि जिस कार्य के कारण का जिस अकारण के साथ संयोग होगा, उस अकारण के साथ उस कार्य का भी संयोग अवश्य ही होगा।
१. अर्थात् पार्थिव परमाणु और जलीय परमाणु के संयोग से उत्पन्न पार्थिव द्वयणुक का जलीय परमाणु के साथ संयोग, और जलीय द्वयणुक का पार्थिव परमाणु के साथ संयोग, इन दो! संयोगज संयोगों से पार्थिव द्वयणुक और जलीय द्वयणुक इन दोनों में संयोग की उत्पत्ति होती है ।
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