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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [द्रव्ये वायु
प्रशस्तपादभाष्यम् तस्याप्रत्यक्षस्यापि नानात्वं सम्मूछेनेनानुमीयते । सम्मूछेनं पुनः
प्रत्यक्ष के द्वारा ज्ञात न होने पर भी वायु में अनेकत्व का अनुमान 'समूर्छन' से होता है। विरुद्ध दो दिशाओं में गतिशील समानवेग की दो वायुओं
न्यायफन्दली कम्पत्वाद् नदीपूराहतवेतसादिवनकम्पवत् । भूकम्पेन व्यभिचार इति चेन्न, तस्यान्यहेतुत्वावगमात्, स्पर्शवद्रव्यसंयोगजे तु विशिष्ट कम्पत्वमेव प्रमाणमित्यव्यभिचारः । ननु यदेव द्रव्यं स्पर्शनानुमितं तदेव शब्दादिभिरप्यनुमीयते, न तु प्रतिलिङ्गं द्रव्यान्तरानुमितिः, किमिह प्रमाणं येनैतदुच्यते स्पर्शशब्दधृतिकम्पलिङ्गो वायुरिति ? इदं प्रमाणम्, स्वर्शानुमितद्रव्यकार्यत्वेनैव शब्दादीनामुपपत्तौ सम्भवन्त्यां द्रव्यान्तरकल्पनावैयर्थ्यमिति ।
एवं स्थिते वायौ तद्धर्म दर्शयति-तिर्यग्गमनस्वभाव इति । तिर्यग्गमनं स्वभावो यस्येति । मेधादिप्रेरण इतस्ततो नयने । धारणे गुरुत्वप्रतिबन्धे । आदिशब्दाद् वर्षणे समर्थः । मेघादीत्यादिपदेन यानपात्रादिपरिग्रहः, तेषामपि वायुना प्रेय॑माणत्वात् ।
अनुमीयमानेष्वाकाशादिष्वेकानेकत्वोपलब्धौ संशये सति तद्व्युदासार्थमाहसे आहत किनारे के बेतवन का कम्पन । (प्र०) यह हेतु तो भूकम्प में व्यभिचरित है ? (उ०) भूकम्प का कुछ और ही कारण समझा जाता है। भूकम्प की अपनी एक विशिष्टता है, जिससे समझा जाता है कि भूकम्प स्पर्शयुक्त किसी द्रव्य के संयोग से ही उत्पन्न होता है। तस्मात् उक्त हेतु में कोई व्यभिचार नहीं है । (प्र०) 'शब्द हेतु से जिस द्रव्य का अनुमान होता है, उसी द्रव्य का कम्पादि हेतुओं से भी अनुमान होता है, शब्दादि प्रत्येक हेतु से विभिन्न द्रव्य का अनुमान नहीं होता है' इसमें क्या प्रमाण है ? एवं क्या प्रमाण है कि कथित शब्दादि हेतुओं में से सभी वायु के ही ज्ञापक हैं ? (उ०) इसमें यही प्रमाण है कि स्पर्श से अनुमित वाय नाम के द्रव्य से हो उक्त शब्दादि कार्यों की उत्पत्ति होगी उसके लिए और द्रव्यों की कल्पना व्यर्थ है।
इस प्रकार वायु के सिद्ध हो जाने पर 'तिर्यग्गमनस्वभावः' इत्यादि से उसका धर्म दिखलाते हैं। तिर्यग्गमनं स्वभावो यस्य' इस बहुव्रीहि समास से उक्त शब्द निष्पन्न है। मेघ आदि के 'प्रेरण' में अर्थात् इधर-उधर ले जाने में, और 'धारण' में, गुरुत्व के प्रतिरोध में, एवं 'आदि' पद से उनको बरसाने में समर्थ है। 'मेघादि' पद में आनेवाले 'आदि' पद से सवारी वर्तन प्रभृति द्रव्यों का सङ्ग्रह समझना चाहिए ।
आकाशादि द्रव्यों में एकत्व और अनेकत्व दोनों ही उपलब्ध होते हैं (इनमें आकाश,
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