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प्रकरणम्
भाषानुवादसहितम्
न्यायकन्दली
लिङ्गवल्लिङ्गविशेषणस्थापि ज्ञायमानस्यैवानुमानहेतुत्वम् । अथ मन्यसे 'ज्ञानेन स्वोत्पत्त्यनन्तरमर्थे ज्ञातता नाम काचिदवस्था जन्यते पाकेनेव तण्डुलेषु पक्वता, सा चार्थधर्मत्वादर्थेन सह प्रतीयते' इति । तदप्यसारम् अननुभवात् । यथा हि तण्डुलानामेवौदनीभावः पक्वताऽनुभूयते नैवमर्थस्य ज्ञातता। या चेयमपरोक्षरूपता हानादिव्यवहारयोग्यता च तस्य, साऽपि हि ज्ञानसम्बन्धो न धर्मान्तरम् । यथा चार्थे ज्ञायमाने ज्ञातता, तथा ज्ञाततायामपि ज्ञायमानायां ज्ञाततान्तरमित्यनवस्था । अथेयं स्वप्रकाशा ? ज्ञाने कः प्रद्वेषः ?
वस्तुतस्त्रिकालविशिष्टोऽप्यर्थो ज्ञानेन प्रतीयमानो वर्तमानकालावच्छिन्नः प्रतीयते। या च त्रिकालस्य वर्तमानकालावच्छिन्नावस्था सा ज्ञातता, ज्ञानकृतत्वात्तस्य लिङ्गमिति कश्चित् । तदपि न किञ्चित्, वर्तमानावछिन्नता
भी कारण है वह लिङ्ग की तरह ज्ञात होकर ही। अगर यह माने कि (प्र०) ज्ञान की उत्पत्ति के बाद इस ज्ञान से ही अर्थ की एक विशेष प्रकार की अवस्था होती हैं, जिसे ज्ञाततावस्था कहते हैं । जिस प्रकार कि चावल में पाक से पक्वता नाम की एक अवस्था उत्पन्न होती है । (उ०) इस कथन में भी कुछ विशेष सार नहीं है, क्योंकि पाक से चावल में जिस प्रकार ओदनावस्था रूप पक्वता का अनुभव होता है, वैसे ही अर्थ में ज्ञातता का कोई अनुभव नहीं होता । ( विषयों के ज्ञान के बाद जो) उसमें अपरोक्ष रूपता, त्याग या ग्रहण करने की जो योग्यता भासित होती है, वह भी ज्ञान सम्बन्ध को छोड़ कर और कुछ नहीं है। एवं इस पक्ष में अनवस्था दोष भी है, क्योंकि जिस प्रकार ज्ञात होने पर अथों में ज्ञातता मानते हैं, उसी प्रकार ज्ञातता के ज्ञात होने पर उसमें भी कोई दूसरी ज्ञातता माननी पड़ेगी। जिसका पर्यवसान अनवस्था में होगा। अगर ज्ञातता को स्वप्रकाश मान लें तो फिर ज्ञान की ही स्वप्रकाश मान लेने में क्यों द्वेष है ?
कोई कहते हैं कि (प्र.) तीनों कालों में से वर्तमान काल ही ऐसा है जिससे युक्त अर्थ का प्रत्यक्ष होता है अर्थात् वर्तमान कालिक वस्तुओं का ही प्रत्यक्ष होता है । अतः वस्तुओं की जो वर्तमानावस्था, भूतावस्था और भविष्यदवस्था है इनमें से वस्तुओं के प्रत्यक्षमूलक होने के कारण केवल वर्तमानावस्था ही उसकी ज्ञातता है ! यह ज्ञातता हो ज्ञानानुमिति का हेतु है । (उ०) किन्तु इस कथन में भी कुछ सार नहीं है, क्योंकि वस्तुओं का वर्तमान काल के साथ सम्बन्ध ( या उसमें रहना ) ही उनकी
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