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ग्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [गुणे रूपादीनां पाकजोत्पत्ति
न्यायकन्दली रक्तादीनामुत्पादः, श्यामाधुच्छेदकाग्निसंयोगस्य विनाशः, द्वितीयपरमाणौ द्रव्यारम्भकक्रियाया उत्पद्यमानतेत्येकः कालः। ततस्तत्कार्यस्य विनाशः, तत्कार्यस्य विनश्यत्ता, उत्तरसंयोगस्योत्पादः, क्रियाविभागविभागजविभागानां विनश्यत्ता, द्वितीयपरमाणौ क्रियाया उत्पादः, विभागस्योत्पद्यमानतेत्येकः कालः । ततस्तत्कार्यस्य विनाशः, तत्कार्यस्य विनश्यत्ता, क्रियाविभागविभागजविभागानां विनाशः, द्वितीयपरमाण्वाकाशाविभागस्योत्पादः, तत्संयोगस्य विनश्यत्तेत्येकः कालः। ततस्तत्कार्यस्य विनाशः, तत्कार्यस्य विनश्यत्ता, परमाण्वाकाशसंयोगविनाशः, उत्तरसंयोगस्योत्पद्यमानतेत्येकः कालः। ततस्तत्कार्यस्य विनाशः, तत्कार्यस्य विनश्यत्ता, परमाणोः परमाण्वन्तरेण सहोत्तरसंयोगोत्पादः, द्वय णुकस्योत्पद्यमानता, विभागकर्मणोविनश्यत्तेत्येकः कालः । ततस्तत्कार्यस्य विनाशः, तत्कार्यस्य विनश्यत्ता, द्वयणुकस्योत्पादः, तद्गतानां रूपादीनामुत्पद्यमानता, विभागकर्मणोविनाशः, ततः क्षणान्तरे कारणगुणप्रक्रमेण द्वयणुके गुणान्तरोत्पादः । एवं सर्वत्र द्वयणुकेषु कल्पना।
त्र्यणुकाद्युत्पत्तौ तु कर्म न चिन्तनीयम्, युगपद् बहूनां परमाणूनां रक्तरूपादि की उत्पत्ति, श्यामरूपादि के नाशक अग्नि के संयोग का विनाश, दूसरे (पके हुए ) परमाणुओं में द्रव्य को उत्पन्न करनेवाली क्रिया को सम्भावना ये पाँच काम एक समय में होते हैं । (४) इसके बाद व्यसरेणुजनित द्रव्य से उत्पन्न कार्यद्रव्य का विनाश, एवं इस कार्यद्रव्य से उत्पन्न द्रव्य के विनाश की सम्भावना, क्रिया और विभागजविभागों का विनाश, द्वितीय परमाणु के आकाश के साथ विभाग की उत्पत्ति, द्वितीय परमाणु एवं आकाश के पहिले संयोग के विनाश की सम्भावना ये छ: काम एक समय में होते हैं। (५) इसके बाद प्रकृत कार्य का नाश होता है। इससे विनष्ट कार्यद्रव्य से उत्पन्न द्रव्य के विनाश की सम्भावना, एक परमाणु का दूसरे परमाणु के साथ उत्तरसंयोग की उत्पत्ति, (पके हुए) द्वयणक की उत्पत्ति की सम्भावना, एवं विभाग और क्रिया के विनाश की सम्भावना ये छ: काम एक समय में होते हैं। (६) इसके बाद ( उक्त सम्भावित विनाश के प्रतियोगी) कार्यद्रव्य का विनाश, एवं इस कार्यद्रव्य से उत्पन्न कार्यद्रव्य के विनाश की सम्भावना, ( पके हुए ) द्वथणुक की उत्पत्ति, द्वयणुक में उत्पन्न होनेवाले ( रक्त) रूपादि गुणों की उत्पत्ति की सम्भावना, विभाग एवं क्रिया का विनाश ये छ: काम एक समय में होते हैं। इसके बाद अगले क्षण में दूसरे रक्त रूपादि गुणों की उत्पत्ति होती है। इसी प्रकार नवीन घटादि के प्रयोजकीभूत और द्वषणुकों में भी कल्पना करनी चाहिए ।
यसरेणु की उत्पत्ति में क्रिया की चिन्ता अनावश्यक है, क्योंकि बहुत से परमा
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