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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम्
रिमाण
न्यायकन्दली द्रव्ययोरप्रचितारब्धापेक्षया प्रचितारब्धे परिमाणातिशयो न भवेत्, अस्ति च विशेषः, तेनैव तर्कयामो न संख्या कारणं न महत्त्वमिति। यत्र त्वप्रचितैरणुभिर्महद्भिश्च प्रचितरारब्धयोर्द्रव्ययोः प्रचितैर्महद्भिरारब्धे महत्त्वातिशयदर्शनं तत्र महत्त्वप्रचययोः कारणत्वम् । यत्र प्रचितैः समानपरिमाणैर्बहुतरसंख्याकैरप्रचितैश्चारब्धयोर्द्रव्ययोर्बहुतरसंख्याकैः प्रचितैरारब्धेऽतिशयदर्शनम्, तत्र संख्याप्रचययोः कारणत्वम् । यत्राप्रचितैरणुभिरल्पसंख्यैरारब्धात् प्रचितबहुतरस्थूलारब्धे विशेषदर्शनम्, तत्र त्रयाणामेव बोद्धव्यम् । यस्तु मन्यते तुलापरिमेयेषु द्रव्येषु कारणगतानि पलानि परिमाणोत्पत्तौ कारणं न महत्परिमाणानि, तन्मते पलस्य कारणत्वमभ्युपगम्य प्रतिषेधः कृतः, स्वमते तु पलस्याकारणत्वात्।
द्वित्वसंख्या चाण्वोर्वर्तमाना द्वयणुकेऽणुत्वमारभते । यस्तु परमाणुपरिमाणाभ्यामेव द्वयणुके परिमाणोत्पत्तिमिच्छति, तं प्रति द्वयणुकस्याप्यणु
महत्त्व एवं प्रचय इन दोनों से युक्त अवयवों के द्वारा उत्पन्न द्रव्य के परिमाण में एवं महत्त्व से युक्त किन्तु प्रचय से रहित अवयवों से उत्पन्न द्रव्य के महत्त्व में अन्तर की उपलब्धि नहीं होगी, किन्तु उक्त दोनों द्रव्यों के परिमाणों में अन्तर अवश्य है । अतः यह तर्क करते हैं कि उन महत्परिमाणों का अवयवों के महत्परिमाण या संख्या कारण नहीं हैं, क्योंकि प्रचयशून्य अणुओं से उत्पन्न द्रव्य के परिमाण की अपेक्षा प्रचय एवं महत्त्व इन दोनों से युक्त अवयवों के द्वारा उत्पन्न द्रव्य के परिमाण में विशेष प्रकार के महत्त्व की उपलब्धि होती है, अतः ऐसे स्थलों के महत्त्व का महत्व
और प्रचय दोनों ही कारण हैं। प्रचय से युक्त बहुत से समान परिमाण के अवयवों से उत्पन्न द्रव्य के महत् परिमाण में, प्रचय से युक्त उससे अधिक संख्या के एवं उसी प्रकार के महत्त्व से युक्त अवयवों से उत्पन्न द्रव्य के परिमाण में भी अन्तर उपलब्ध होता है, अतः ऐसे स्थलों में संख्या, प्रचय एवं महत्परिमाण ये तीनों ही उस प्रकार के महत्परिमाण के) कारण हैं। जो कोई यह मानते हैं कि तराजू से तोले जाने योग्य द्रव्यों के महत्परिमाणों का कारण कारणों में रहनेवाले 'पल' (कर्षचतुष्टय) ही हैं, कारणों में रहनेवाले महत्परिमाण नहीं, उनके मत के अनुसार पल में महत्परिमाण की कारणता मानकर ही उसका खण्डन किया है, क्योंकि अपने सिद्धान्त में पल में महत्परिमाण की कारणता स्वीकृत नहीं है
'द्वित्वसंख्या चाण्वोर्वर्तमाना द्वयणुकेऽणुत्वमारभते' जो कोई दो परमाणुओं के दोनों अणुत्वों को ही द्वघणुक परिमाण का कारण मानते हैं, उनके लिए पहिले को इस युक्ति को दुहराना भी ठीक है कि उनके मत में घणुक का परिमाण परमाणुओं के
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