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प्रकरणम् ]
भाषानुवादसहितम्
न्यायकन्दली स्वनिमित्तकारणव्यतिरेकेणापि धर्माद्यपेक्षत्वमिति यथासंभवमप्यू ह्यम्, कर्मारम्भेऽपि तृणे कर्मारम्भकत्वात् । बीजविनाशानन्तरमकुरस्योत्पत्तेमपिण्डध्वंसानन्तरं घटस्योत्पादादभावादेव द्रव्यस्योत्पादो न संयोगादिति चेत् ? तदयुक्तम्, अवयवसंयोगविशेषेभ्यो द्रव्यस्योत्पत्तिदर्शनात्, अभावस्य निरतिशयत्वे कार्यविशेषस्याकस्मिकत्वप्रसङ्गाच्च ।
इदं त्विह निरूप्यते-किं सत् क्रियते ? असदेव वा? सत् क्रियत इति सांख्याः। असदकरणात्, न ह्यसतो गगनकुसुमस्य सत्त्वं केनचिच्छक्यं कर्तुम्, सतश्च सत्कारणं युक्तमेव, तद्धर्मत्वात् । दृष्टं हि तिलेषु सत एव तैलस्य निष्पीडनेन करणम् । असतस्तु करणे न निदर्शनमस्ति । इतश्च सत्कार्यम्-उपादानग्रहणात्, उपादानानि
धर्मादि वस्तुओं की भी अपेक्षा रहती है। इसी प्रकार यथासम्भव ऊह करना चाहिए । इसी प्रकार तृणादि में कर्म के उत्पादन में भी संयोग इतर सापेक्ष ही है (द्रव्योत्पादन की तरह इतर निरपेक्ष नहीं)। (प्र.) ( अवयवों का ) संयोग द्रव्य का कारण ही नहीं है, क्योंकि बीज के विनाश के बाद अङ्कुर की उत्पत्ति होती है, एवं मिट्टी के गोले के नष्ट होने के बाद ही घट की उत्पत्ति होती है, अतः अभाव ( ध्वंस ) ही द्रव्य का कारण है। ( उ०) यह पक्ष ठीक नहीं है, क्योंकि अवयवों के विशेष प्रकार के संयोग से विशेष प्रकार के द्रव्य की उत्पत्ति देखो जाती है। एवं अभावों में कोई अन्तर न रहने के कारण इस पक्ष में कार्यों की उत्पत्ति अनियमित भी हो जाएगी।
अब यहाँ यह विचार करते हैं कि पहिले से विद्यमान वस्तु की ही उत्पत्ति कारणों से होती है ? या पहिले से सर्वथा अविद्यमान वस्तु की ? इस प्रसङ्ग में सांख्य दर्शन के अनुयायियों का कहना है कि 'सत्' अर्थात् पहिले से विद्यमान वस्तु की ही उत्पत्ति कारणों से होती है। ( इसके लिए इस हेतु वाक्य का प्रयोग करते हैं ) 'असदकरणात' अर्थात् 'असत्' को कोई उत्पन्न नही कर सकता। सर्वथा अविद्यमान आकाशकुसुम को कोई भी उत्पन्न नहीं कर सकता। 'सत्' कार्य का कारण भी 'सत्' ही होना चाहिए, क्योंकि कार्य कारण के धर्म से युक्त होता है। यह प्रत्यक्ष देखा जाता है कि तिल में पहले से विद्यमान तेल को ही पेरकर उससे निकालते हैं । असत् वस्तु के उत्पादन में ऐसा कोई दृशन्त नहीं हैं । 'उपादानग्रहण' रूप हेतु से भी
१. कहने का तात्पर्य है कि अभाव को ही द्रव्य का असमवायिकारण माने तो बीज से ही अकुर की उत्पत्ति होती है, एवं मिट्टी के गोले से ही घट की उत्पत्ति होती है, इस प्रकार के नियम नहीं रह जायँगे । क्योंकि बीज के अभाव में एवं मिट्टी के गोले के अभाव में कोई अन्तर तो है नहीं, अतः यह भी कहा जा सकता है कि मिट्टी के गोले के अभाव से अकुर की उत्पत्ति और बीज के अभाव से घड़े की उत्पत्ति होती है। यही कार्योत्पत्ति की अनियमितता या आकस्मिकत्व है।
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