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प्रकरणम्] भाषानुवादसहितम्
३२७ प्रशस्तपादभाष्यम् संयोगापेक्षो वा द्वितूलके महत्त्वमारभते न बहुत्बमहत्त्वानि, समानसंख्यापलपरिमाणैरारब्धेऽतिशयदर्शनात् । द्वित्वसंख्या चाण्वोवर्तमाना बहुत्व संख्या से नहीं, महत्परिमाण से भी नहीं। अवयवों में रहनेवाला यह प्रचय उक्त महत्त्व के उत्पादन में कहीं अपने आश्रय रूप रूई के दो खण्डों के अवयवों के प्रशिथिल संयोग रूप प्रचय की अपेक्षा रखता है, कहीं वह अपने आश्रयीभूत दोनों अवयवों के उत्पादक साधारण संयोग की सहायता से ही उक्त महत्परिमाण को उत्पन्न करता है। दो परमाणुओं में रहनेवाली द्वित्व संख्या द्वयणुक में परिमाण को उत्पन्न करती है । जिस
न्यायकन्दली अथ कथं तत्र बहुत्वमहत्त्वयोरेव क्लप्तसामर्थ्ययोः कारणत्वं नेष्यते ? तत्राह-न बहुत्वमहत्त्वानीति । प्रचयभेदापेक्षया बहुवचनम् । यत्र प्रचयविशेषात् परिमाणविशेषप्रतीतिरस्ति तत्र बहुत्वं महत्त्वं च न कारणमित्यर्थः । अत्रोपपत्ति:समानसंख्यापलपरिमाणैरारब्धेऽतिशयदर्शनात् । संख्या च पलं च परिमाणं च संख्यापलपरिमाणानि, समानानि संख्यापलपरिमाणानि येषां तेरारब्धे कार्येऽतिशयदर्शनात् । यदि हि संख्येव कारणं समानसंख्यस्त्रिभिश्चतुभिर्वा प्रशिथिलसंयोगैनिबिडसंयोगैश्चारब्धयोर्द्रव्ययोः प्रशिथिलसंयोगारब्धे निबिडसंयोगारब्धापेक्षया महत्त्वातिशयो न स्यात्, कारणसंख्याया उभयत्रापि तुल्यत्वात् । तथा यदि महत्त्वमपि कारणं समानमहत्त्वैः प्रचितैरप्रचितश्चारब्धयो
महत्परिमाण में एवं बहुत्व संख्या में महत्परिमाण की कारणता स्वीकृत है ही, फिर इन्हीं दोनों में से किसी को इस महत्परिमाण का भी कारण क्यों नहीं मान लेते ? इसी प्रश्न का समाधान 'न बहुत्वमहत्त्वानि' इत्यादि से देते हैं। 'बहुत्वमहत्त्वानि' इस पद में बहुवचन का प्रयोग उन दोनों के आश्रयों में जो बहुत्व है उसके अभिप्राय से है । 'विशेष प्रकार के प्रचय से उत्पन्न महत्परिमाण का कारण महत्त्व और बहुत्त्व संख्या नहीं हो सकती' इस सिद्धान्त की युक्ति ही 'समानसंख्यापलपरिमाण रारब्धेऽतिशयदर्शनात्' इस वाक्य के द्वारा प्रतिपादित हुई है । 'संख्या च पलञ्च परिमाणञ्च संख्यापलपरिमाणानि, समानानि संख्यापलपरिमाणानि येषां तैः, आरब्धेऽतिशयदर्शनात्' अगर उक्त महत्त्व का कारण केवल संख्या ही हो प्रचय नहीं तो फिर तीन या चार अवयवों के प्रशिथिल संयोग से उत्पन्न परिमाण में एवं तीन या चार ही अवयवों के निबिड़ संयोग से उत्पन्न परिमाण में अन्तर उपपन्न नहीं होगा, क्योंकि दोनों द्रव्यों के कारणों की संख्या समान हैं। अगर केवल अवयवों के महत्त्व को ही उक्त महत्परिमाण का भी कारण माने (प्रचय को नहीं) तो फिर
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