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प्रकरणम् ]
भाषानुवादसहितम्
२६७
प्रशस्तपादभाष्यम् एकादिव्यवहारहेतुः संख्या 'यह एक है, ये दो हैं' इत्यादि व्यवहारों का कारण ही 'संख्या' है।
न्यायकन्दली संयोगादुत्पन्नेषु द्वयणुकान्तरकारणस्य परमाणोद्वर्यणुकान्तरकारणेन परमाणुना सह संयोगाद् द्वयणुकस्य द्वयणुकान्तरकारणपरमाणुना संयोगः, ततोऽपि द्वयणुकयोः संयोग इत्यनेन क्रमेण संयोगजसंयोगेभ्य एतेषामुत्पादात् । एवं यथोपदेशं यथाप्रज्ञं च व्याख्यातमस्माभिः ।
सिद्धेऽपि सङ्ख्यास्वरूपे ये केचिदत्यन्तदर्दर्शनाभ्यासतिरोहितबुद्धयो विप्रतिपद्यन्ते तान् प्रत्याह-एकादीति । व्यवहतिर्व्यवहारो ज्ञेयज्ञानं व्यवह्रियतेऽनेनेति व्यवहारः शब्दः, एकादिव्यवहार एकं द्वे त्रीणीत्यादिप्रत्ययः शब्दश्च, तयोर्हेतुः सङ्खयेति । एक द्वे त्रीणीत्यादिप्रत्ययो विशेषणकृतो विशिष्टप्रत्ययत्वाद् दण्डीतिप्रत्ययवत् । एवं शब्दमपि पक्षीकृत्य विशिष्टप्रत्ययत्वादिति हेतुरवगन्तव्यः । णुओं के संयोग से द्वथणुकों की उत्पत्ति हो जाने पर दूसरे द्रघणुक के कारणीभूत परमाणु का तीसरे द्वयणुक के कारणीभूत परमाणु के साथ भी संयोग होगा। इस संयोग से एक द्वयणुक का दूसरे द्वयणुक के कारणीभूत परमाणु के साथ भी संयोग होगा । परमाणु एवं द्वथणुक के इस संयोग से इस परमाणु के कार्यरूप द्वथणुक एवं पहिले के द्वयणुक इन दोनों में संयोगजसंयोग होगा। इन द्वथणुकों के संयोगजसंयोग के द्वारा भी यसरेणु की उत्पत्ति हो सकती है । इस विषय में हमलोगों की जैसी शिक्षा है और जितनी बुद्धि हैं, तदनुसार व्याख्या लिखी है ।
___ संख्या को यद्यपि सभी लोग जानते हैं फिर भी अत्यन्त दुष्ट दर्शनों के अभ्यास से जिनकी बुद्धि मारी गयी है, वे इसमें भी विवाद ठानते हैं अतः उनको समझाने के लिए ही 'एकादि' इत्यादि सन्दर्भ लिखते हैं । 'व्यवहृतिर्व्यवहारः' इस व्युत्पत्ति के अनुसार 'व्यवहार' शब्द का अर्थ ज्ञान है । एवं 'व्यवह्रियते अनेन' इस व्युत्पत्ति के अनुसार इसी का शब्दप्रयोग अर्थ भी है। (तदनुसार ) 'एकादिव्यवहारः' अर्थात् एक, दो, तीन इत्यादि की प्रतीतियां एवं एक, दो, तीन इत्यादि शब्दों के प्रयोग इन दोनों की हेतु ही 'संख्या' है । (प्रतीति की हेतुता संख्या में इस प्रकार है कि ) जैसे कि 'दण्डी पुरुषः' इस विशिष्ट प्रतीति के प्रति दण्ड केवल इसीलिए कारण है कि वह भी विशिष्ट प्रतीति ( अर्थात् विशेषण से युक्त विशेष्य की प्रतीति ) है, वैसे ही 'यह एक है, ये दो हैं ये तीन हैं' इत्यादि प्रतीतियाँ भी विशिष्ट प्रतीति होने के कारण ही एकत्वादि संख्या रूप विशेषणों से उत्पन्न होती है। इसी प्रकार शब्द को पक्ष बनाकर विशिष्ट शब्दत्व
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