________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम्
[गुणे परिमाण
प्रशस्तपादभाष्यम् परिमाणं मानव्यवहारकारणम् । तच्चतुर्विधम् -अणु महद् दीर्घ हस्वं चेति । तत्र महद् द्विविधम्-नित्यमनित्यं च । नित्यमा
मान ( तौल और नाप ) के व्यवहार का असाधारण कारण ही 'परिमाण' है। वह अणु, महत्, दीर्घ और ह्रस्व भेद से चार प्रकार का है।
न्यायकन्दली यस्याभावात् । कारणपरिपाकस्य कादाचित्कत्वात् तत्कार्यस्य कादाचित्कत्वमिति चेत् ? कारणस्य परिपाकः कार्यः, कार्यजननं प्रत्याभिमुख्यम्, सोऽपि स्वसंवेदनमात्राधीनो न कादाचित्को भवितुमर्हति । अस्ति चायं कादाचित्कः प्रत्यक्षप्रतिभासः, स एव प्रतीतिविषयं देशकालकारणस्वभावनियतं बाह्यं वस्तु व्यवस्थापयंस्तदभावसाधनं बाधत इति कालात्ययापदिष्टत्वमपि हेतूनामित्युपरम्यते । समधिगता संख्या।
सम्प्रति परिमाणनिरूपणार्थमाह-परिमाणं मानव्यवहारकारणमिति । मानव्यवहारोऽणु महद् दीर्घ ह्रस्वमित्यादिज्ञानं शब्दश्च, तस्य कारणं परिमाणमित्यनेन प्रत्यक्षसिद्धस्यापि परिमाणस्य विप्रतिपन्नं प्रति कार्येण सत्तां दर्शयति । यथा तावज्ज्ञानस्य ज्ञेयप्रसाधकत्वं तथोक्तम् । को ही मानना है। एवं इस पक्ष में नीलादि प्रतीतियों का कादाचित्कत्व (कभी होना कभी न होना) को उपपत्ति भी ठीक नहीं बैठती है, क्योंकि नीलादि विज्ञान के प्रयोजक क्षणसन्तान की सत्ता तो बराबर है ही। अगर सदा उसकी अनुवृत्ति नहीं रहती है तो फिर आगे नीलादि की प्रतीतियां नहीं होंगी। (प्र०) (यद्यपि) कार्य को अपने के भिन्न किसी की अपेक्षा नहीं है फिर भी कारण का परिपाक कदाचित् ही होता है, अतः कार्य भी कभी होता है कभी नहीं। (उ०) कार्य के प्रति उन्मुख होना ही कारणों का परिपाक है, वह भी स्वसंवेदन रूप विज्ञान से भिन्न कुछ भी नहीं है, अतः उसका भी कादाचित्कत्व उचित नहीं है। किन्तु कार्यों का कादाविकत्व प्रत्यक्ष से सिद्ध है । यह प्रत्यक्ष ज्ञान देश, काल और स्वभाव से नियत अपने बाह्य विषय का स्थापन करते हुए उसके अभाव के साधक को भी बाधित करता है। इस प्रकार बाह्य अर्थ को सत्ता का लोप करनेवाले ये सभी हेतु कालात्ययापदिष्ट हैं। (इस प्रकार) संख्या को अच्छी तरह समझा।
'परिमाणं मानव्यवहारकारणम्' इत्यादि पक्ति से अब परिमाण का निरूपण करते हैं। अणु, महत्, दीर्घ, ह्रस्व इन सबों के ज्ञान एवं इन सबों के प्रतिपादक शब्दों के प्रयोग ये दोनों ही प्रकृत 'मानव्यवहार' शब्द से अभिप्रेत हैं। प्रत्यक्ष के द्वारा सिद्ध परिमाण को जो नहीं मानना चाहते, उन्हें (परिमाण के उक्त व्यवहार रूप) कार्य लिङ्गक अनुमान की सूचना 'तस्य परिमाणम्' इत्यादि से देते हैं। जिस प्रकार ज्ञान अपने ज्ञेय अर्थ का साधक है उसे (संख्याप्रकरण में) दिखला चुके हैं।
For Private And Personal