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न्यायकन्दलीसंवलिप्रशस्तपादभाष्यम् [गुणेसंख्या
न्यायकन्दली एवं द्वित्वस्योत्पन्नस्य प्रतीतिकारणं निरूपयति-ततः पुनरिति । ततो द्वित्वोत्पादादनन्तरं द्वित्वसामान्ये तस्मिन् ज्ञानमुत्पद्यते । अत्रापि संयुक्तसमवाय एव हेतुः । एकत्वसामान्यापेक्षया पुनरिति वाचोयुक्तिः । द्वित्वसामान्यं द्वित्वगुणस्य विशेषणम, न चागहीते विशेषणे विशेष्ये बुद्धिरुदेति, अतो विशेष्यविज्ञानकारणत्वेनादौ सामान्यज्ञानं निरूपितम् । अस्य सद्भावेऽपि द्वित्वसामान्यविशिष्टा द्वित्वबुद्धिरेव प्रमाणम् । तस्याः सद्भावेऽपि द्वे द्रव्ये इति ज्ञानं प्रमाणम् । द्वे द्रव्ये इति ज्ञानं विशेषणज्ञानपूर्वकं विशिष्टज्ञानत्वाद् दण्डीति ज्ञानवदित्यनुमिते गुणज्ञाने तस्यापि विशिष्टज्ञानत्वेन विशेषणज्ञानपूर्वकत्वमनुमेयम् ।
ये तु विशेषणविशेष्ययोरेकज्ञानालम्बनत्वमाहुः, तेषां सुरभि चन्दन
इस प्रकार से उत्पन्न द्वित्व के प्रत्यक्ष के कारणों का निरूपण ततः पुनः इत्यादि ग्रन्थ से करते हैं । 'ततः' अर्थात् द्वित्व की उत्पत्ति के बाद, 'तस्मिन्' अर्थात् संख्या रूप द्वित्व में जाति रूप द्वित्व (द्वित्वत्व) का ज्ञान उत्पन्न होता है। जाति स्वरूप इस द्वित्व के प्रत्यक्ष में संयुक्तसमवेतसमवाय सम्बन्ध ही कारण है । (द्वित्व के आश्रयीभूत दोनों द्रव्यों में अलग अलग) पहिले एकत्व हो था, उसके बाद द्वित्व की उत्पत्ति हुई-इस आनन्तर्य को समझाने के लिए ही 'पुन:' शब्द का प्रयोग है। जातिरूप द्वित्व (द्वित्वत्व) संख्यारूप द्वित्व का विशेषण है । विशेषण का ज्ञान विशेष्य (विशिष्ट) ज्ञान का कारण है, अतः बिना विशेषण ज्ञान के विशेष्य (विशिष्ट) ज्ञान उत्पन्न ही नहीं हो सकता। इसी लिए सब से पहिले सामान्य रूप द्वित्व के ज्ञान का ही निरूपण किया गया है। जातिरूप द्वित्व (द्वित्वत्व) विशिष्ट संख्यारूप द्वित्व का ज्ञान सर्वजनीन है, इसी से प्रमाणित होता है कि जातिरूप द्वित्व का भी अस्तित्व है। एवं 'द्वे द्रव्ये' इत्यादि आकार की विशिष्ट अनुभूतियों से ही संख्यारूप द्वित्व की सत्ता प्रमाणित होती है। इस प्रसङ्ग में अनुमान का प्रयोग इस प्रकार है कि जिस प्रकार 'दण्डी पुरुषः' यह विशिष्ट बुद्धि केवल विशिष्ट बुद्धि होने के कारण हो दण्डरूप विशेषण को सत्ता के बिना नहीं हो सकती, उसी प्रकार 'टे द्रव्ये' इस आकार की विशिष्ट बुद्धि' भी केवल विशिष्ट बुद्धि होने के कारण ही संख्यात्मक द्वित्व रूप विशेषण के अस्तित्व के बिना सम्भव नहीं है। अतः द्वित्व संख्या की सत्ता अवश्य है। द्वित्व संख्या की इस प्रकार से अनुमिति हो जाने पर 'इस अनुमिति की भी उत्पत्ति विशिष्ट बुद्धि होने के कारण ही जातिरूप द्विज विशेषण की अस्तित्व के बिना सम्भव नहीं है, अतः जातिरूप द्वित्व की भी सत्ता अवश्य है' इस प्रकार द्वित्व संख्या की अनुमिति के बाद जातिरूप द्वित्व का भी उक्त रीति से अनुमान करना चाहिए। .
____ जो कोई विशेष्य और विशेषण दोनों को (नियमतः) एक ही ज्ञान का विषय मानते हैं, उनके सामने 'सुरभि चन्दनम्' इस ज्ञान का प्रसङ्ग रखना चाहिए,
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