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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम
[गुणे संख्या
प्रशस्तपादभाष्यम विनश्यत्ता, द्वित्वगुणज्ञानम् , द्वित्वसामान्यज्ञानस्य विनाशकारणम् , द्वित्वगुणतज्ज्ञानसम्बन्धेभ्यो द्वे द्रव्ये इति द्रव्य बुद्धरुत्पद्यमानतेत्येकः कालः । के विनाश की सामग्री का संवलन, गुणरूप द्वित्व का ज्ञान, सामान्यरूप द्वित्व विषयक ज्ञान के विनाशक गुणरूप द्वित्व का ज्ञान, गुणरूप दित्व और उसका ज्ञान एवं गुणरूप द्वित्व का ( अपने आश्रय द्रव्य के साथ ) सम्बन्ध इन तीनों से 'द्वे द्रव्ये' इस आकार के द्रव्य विषयक ज्ञान की सामग्री का
न्यायकन्दली रुत्पद्यमानता उत्पत्तिकारणसान्निध्यम । द्वित्वसामान्यज्ञानमपेक्षाबुद्धविनाशकं गुणबुद्धश्चोत्पादकम् । तेन तदुत्पत्तिरेवैकस्य विनश्यता परस्य चोत्पद्यमानतेत्युपपद्यते विनश्यत्तोत्पद्यमानतयोरेककालत्वम् । तत इदानीमपेक्षाबुद्धिविनाशो द्वित्वविनाशस्य कारणम्, तत्सद्भावे तस्यानुपलम्भात् । अतोऽपेक्षाबुद्धिविनाशो द्वित्वस्य विनश्यत्ता । दृष्टो गुणानां निमित्तकारणादपि विनाशो यथा मोक्षप्राप्त्यवस्थायामन्त्यतत्त्वज्ञानस्य शरीरविनाशात् ।
द्वित्वगुणज्ञानं द्वित्वसामान्यज्ञानस्य विनाशकारणं बुद्धर्बद्धयन्तरविरोधात् । तथा द्रव्यज्ञानस्यापि कारणम् । अतो गुणबुद्धयुत्पाद एवैकस्योत्पद्यमानताऽपरस्य विनश्यता स्यात् । द्वित्वगुणज्ञानसम्बन्धेभ्य इति । जातिरूप द्वित्व का गुणस्वरूप द्वित्व के साथ सम्बन्ध एवं इस सम्बन्ध का ज्ञान इन दोनों से गुणस्वरूप द्वित्व की 'उत्पद्यमानता' अर्थात् द्वित्व संख्या को उत्पन्न करने वाले कारणसमूह परस्पर समीप हो जाते हैं, (द्वित्वोत्पत्ति की सामग्री एकत्र हो जाती है) । जातिरूप द्वित्व (द्वित्वत्व) का ज्ञान अपेक्षाबुद्धि का नाशक एवं गुणस्वरूप द्वित्व (संख्या) विषयक बुद्धि का उत्पादक भी है, अतः जातिरूप द्वित्व विषयक बुद्धि की उत्पत्ति एक (अपेक्षाबुद्धि) की 'विनश्यत्ता' एवं दूसरे (गुणस्वरूप द्वित्वविषयक बुद्धि) की उत्पद्यमानता दोनों ही है। सुतराम् उक्त विनश्यत्ता एवं उक्त उत्पद्यमानता दोनों का एक ही समय रहना युक्ति से सिद्ध है (असङ्गत नहीं)। उसके बाद के क्षण में अपेक्षाबुद्धि का नाश होता है, यही (नाश) द्वित्व के नाश का कारण है, क्योंकि अपेक्षाबुद्धि के विनाश के बाद द्वित्व की उपलब्धि नहीं होती है, अतः अपेक्षाबुद्धि का विनाश ही द्वित्वबुद्धि की 'विनश्यत्ता' है । जिस प्रकार मोक्षप्राप्ति की अवस्था में शरीर रूप निमित्त कारण के विनाश से अन्तिम तत्त्वज्ञानरूप गुण का विनाश होता है, उसी प्रकार (यह मानना पड़ेगा कि) निमित्तकारण के विनाश से भी अन्य गुणों का विनाश होता है ।
गुणस्वरूप द्वित्व का ज्ञान जातिरूप द्वित्वविषयक ज्ञान का विनाशक है, क्योंकि एक बुद्धि दूसरी बुद्धि की विनाशिका है। एवं (गुणस्वरूप द्वित्व विषयक यह
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