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भकरणम् ]
भाषानुवादसहितम्
न्यायकन्दली द्वित्वमारभ्यत इत्येककालनिर्देशः क्षणद्वयात्मकलवाख्यकालाभिप्रायेण । क्षणाभिप्रायेण तु कालभेद एव, कार्यकारणयोः पूर्वापरकालभावात् । ज्ञानादर्थस्योत्पाद इति नालौकिकमिदं, सुखादीनां तस्मादुत्पत्तिदर्शनात् । बाह्यार्थस्योत्पादो न दृष्ट इति न वैधर्नामात्रम्, तदन्वयव्यतिरेकानुविधायित्वस्योभयत्राविशेषात् । उभयगुणालम्बनस्य द्वित्वाभिव्यञ्जकत्वे सिद्ध सति ज्ञानस्य तदा नानन्तर्यनियमोपपत्तिरिति चेन्न, अनियमप्रसङ्गात् । यदि हि द्वित्वमबुद्धिजं स्याद्रूपादिवत्पुरुषान्तरेणापि प्रतीयेत, नियमहेतोरभावात् । बुद्धिजत्वे तु यस्य बुद्धया यज्जन्यते तत् तेनैवोपलभ्यत इति नियमोपपत्तिः । प्रयोगस्तु द्वित्वं बुद्धिजं नियमेनैकप्रतिपत्तवेद्यत्वाद्, यनियमेनकप्रतिपत्तृवेद्यं तद् बुद्धिजं यथा सुखादिकम् । नियमेनकप्रतिपत्तृवेद्यं च द्वित्वं तस्मादिदमपि बुद्धिजम् ।
वायिकारण हैं। दोनों एकत्व रूप अनेकविषयक एकबुद्धि (अपेक्षाबुद्धि) निमित्तकारण है। जिस समय दोनों एकत्व संख्याओं की एकबुद्धि (अपेक्षाबुद्धि) उत्पन्न होती है, उसी समय दोनों एकत्वसंख्याओं से द्वित्व की उत्पत्ति होती। इसी अभिप्राय से 'इत्येकः कालः' इस वाक्य से एककाल का निर्देश किया गया है । इस निर्देश वाक्य के 'एक काल' शब्द से दो क्षणात्मक 'लव' रूप काल अभिप्रेत है । क्षणात्मक काल के अनुसार वस्तुतः वे क्रियायें क्रमशः हो होती हैं, क्योंकि कारण को पहिले एवं कार्य को पीछे रहना आवश्यक है। ज्ञान से वस्तु की उत्पत्ति कोई अलौकिक घटना नहीं है, क्योंकि ज्ञान से सुखादि की उत्पत्ति देखी जाती है । 'ज्ञान से बाह्य वस्तु की सृष्टि नहीं होती है' यह कहना केवल बाह्य और आन्तर दोनों वस्तुओं के भेद को ही प्रकट करता है, क्योंकि दोनों ही प्रकार की अवस्थाओं के साथ ज्ञान को अन्वय और व्यतिरेक दोनों ही समान रूप से देखे जाते हैं। (प्र०) (द्वित्व के) दोनों आश्रयों में रहनेवाले दोनों एकत्वों से द्वित्व की उत्पत्ति हो ही जायगी, फिर उस के लिए अपेक्षाबुद्धि को भी कारण मानने की क्या आवश्यकता है ? (उ.) द्वित्व को अगर बुद्धिजन्य न मानें तो साधारण्यरूप अनियम की आपत्ति होगी, क्योंकि रूपादि साधारण विषयों की तरह सभी द्वित्व सभी पुरुषों से गृहीत नहीं होते, किन्तु जिस पुरुष की अपेक्षाबुद्धि से जिस द्वित्व की उत्पत्ति होती, वह द्वित्व उसी पुरुष से गृहीत होता है और किसी पुरुष से नहीं । इस प्रकार द्वित्व असांधारण है, साधारण नहीं । अतः अपेक्षाबुद्धि भी द्वित्व का कारण है। (इस प्रसङ्ग में अनुमान का प्रयोग इस प्रकार है कि) नियमतः सुखादि की तरह जो कोई भी वस्तु नियमतः किसी एक ही पुरुष के द्वारा गृहीत होती है, उसकी उत्पत्ति अवश्य ही बुद्धि से होती है। द्वित्व का ग्रहण भी किसी एक ही पुरुष से होता है, अतः द्वित्व भी बुद्धि से उत्पन्न होता है।
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