________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
प्रकरणम् ]
भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम् परत्वापरत्वद्वित्वद्वि पृथक्त्वादीनामकारणत्वम् ।
संयोगविभागशब्दात्मविशेषगुणानां प्रदेशवृत्तित्वम् । परत्व, अपरत्व, द्वित्व, और द्विपृथक्त्वादि गुण किसी के भी कारण नहीं हैं।
संयोग, विभाग, शब्द एवं आत्मा के सभी विशेष गुण ये सभी प्रादेशिक (अव्याप्यवृत्ति ) हैं।
न्यायकन्दली कारणम् । नोदनाभिघातः क्रियोत्पत्तौ निमित्तकारणम् । द्रवत्ववेगयोरपि योज्यम् ।
परत्वापरत्वादीनामकारणत्वम् । नैतान्यसमवायिकारणं नापि निमित्तकारणम् । द्वित्वद्विपृथक्त्वादीनामित्यादिपदेन त्रिपृथक्त्वानां परमाणुपरिमाणपरममहत्परिमाणयोश्च परिग्रहः।
संयोगविभागशब्दात्मविशेषगुणानां प्रदेशवृत्तित्वमिति । प्रवेशवृत्तयोऽव्याप्यवृत्तयः स्वाश्रये वर्तन्ते, न वर्तन्ते चेत्यर्थः । नन्वेतदयुक्तम्, युगपदेकस्यैकत्र भावाभावविरोधात् । नानुपपन्नम्, प्रमाणेन तथाभावप्रतीतेः । तथा हिमहतो वृक्षस्य पुरुषेण सहाग्रे संयोगो मूले च तदभावः प्रतीयते, मूले वृक्षोपलम्भेऽपि संयोगस्य सर्वैरनुपलम्भात् । न च मूलाग्रयोरेव संयोगतदभावौ, तत्प्रदेशाकारण भी है। गुरुत्व अपने आश्रय की पतन क्रिया का असमवायिकारण है, एवं नोदन और अभिघातजनित क्रिया का निमित्तकारण भी है। इसी तरह द्रवत्व और वेग में भी विचार करना चाहिए ।
परत्व एवं अपरत्व प्रभृति चार गुणों का 'अकारणत्व' साधयं है, अर्थात् ये न तो असमवायि कारण हैं और न निमित्तकारण ही ( समवायिकारण तो द्रव्य से भिन्न कोई होता ही नहीं है)। 'द्वित्वद्विपृथक्त्वादि' शब्द में प्रयुक्त 'आदि' पद से विपृथक्त्व, परमाणुओं के परिमाण, एवं परममहत्परिमाण प्रभृति को समझना चाहिए ( अर्थात् ये भी किसी के कारण नहीं होते )।
संयोग, विभाग, शब्द और आत्मा के सभी विशेष गुण इन सबों का 'प्रदेश वृत्तित्व' साधर्म्य है। प्रदेशवृत्ति' शब्द का अर्थ है अव्याप्यवृत्ति अर्थात् ये अपने आश्रय ( के किसी अंश) में रहें भी, एवं अपने आश्रय ( के ही दूसरे किसी अंश में ) न भी रहें। (प्र.) यह तो ठीक नहीं है, क्योंकि एक ही समय में एक ही आश्रय में एक ही वस्तु रहे भी और न भी रहे, क्योंकि 'रहना' और 'न रहना' दोनों परस्पर विरोधी हैं ? (उ०) इसमें कुछ भी असङ्गति नहीं है कि एक ही आश्रय में भाव और अभाव की उक्त प्रतीति प्रमाण से उत्पन्न होती है। एक ही महावृक्ष के अग्रभाग के साथ पुरुष के संयोग की प्रतीति होती है, उसी वृक्ष के मूल भाग में उसी पुरुष के संयोग के
For Private And Personal