________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
प्रकरणम् ]
www.kobatirth.org
भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम्
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
गन्धो घाणग्राह्यः पृथिवीवृत्तिर्घाणसहकारी सुरभिरसुरभिश्च । अस्यापि पूर्ववदुत्पश्यादयो व्याख्याताः ।
२५५
जिस गुण का प्रत्यक्ष घ्राणेन्द्रिय से हो वही 'गन्ध' है । वह केवल पृथिवी में ही रहता है । ( प्रत्यक्ष के उत्पादन में ) वह घ्राण का सहायक है । सुरभि एवं असुरभि भेद से यह दो प्रकार का है । इसकी उत्पत्ति और विनाश प्रभृति पहिले की तरह जानना चाहिए ।
न्यायकन्दली
रोग्यनिमित्तम् । जीवनं प्राणधारणम्, पुष्टिरवयवोपचयः, बलमुत्साह विशेषः, आरोग्यं रोगाभावः, एषां रसो निमित्तम् । एतच्च सर्वं वैद्यशास्त्रादवगन्तव्यम् । रसनसहकारी । स्वगतो रसो रसनस्य बाह्यरसोपलम्भे सहकारी । मधुराम्ललवणतिक्तकटुकषायभेदभिन्नः । मधुरादिभेदेन भिन्नः षट्प्रकार इत्यर्थः । तस्य च नित्यानित्यत्वनिष्पत्तयो रूपवत् । यथा रूपं पार्थिवपरमाणुष्वग्निसंयोगादुत्पत्तिविनाशवत् सलिलपरमाणुषु नित्यं कायें कारणगुणपूर्वकमाश्रमविनाशाद्विनश्यति, तथा रसोऽपि ।
गन्धो घ्राणग्राह्यः । गन्ध एव प्राणग्राह्यो घ्राणग्राह्य एव गन्धः । ननु कथमयं नियमः ? स्वभावनियमात् । ईदृशो गन्धस्य स्वभावो यदयमेव घ्राणेनैकेन गृह्यते नान्यः, दृष्टानुमितानां नियोगप्रतिषेधाभावात् । पृथिवीवृत्तिः ।
में
हैं। रोगों का अभाव ही 'आरोग्य' है । रस इन सबों का कारण है । ये सभी बातें आयुर्वेद से जाननी चाहिए। 'रमन सहकारी' अर्थात् रसनेन्द्रिय रूप द्रव्य में रहने वाला रस रसनेन्द्रिय के द्वारा होनेवाले रस के बाह्य प्रत्यक्ष में सहकारी कारण हैं । 'मधुराम्ललवणकटुकषायादिभेदभिन्नः' अर्थात् मधुरादि भेदों से विभक्त होकर वह छः प्रकार का है । रस के नित्यश्व एवं अनित्यत्व की निष्पत्ति रूप की तरह जाननी चाहिए, अर्थात् जिस प्रकार से रूप पार्थिव परमाणुओं में अग्निसंयोग से उत्पन्न भी होता हैं और नष्ट भी होता है एवं (रूप ) जलादि परमाणुओं नित्य है और कार्य द्रव्यों में कारण के गुणों से उत्पन्न होता है, एवं आश्रय के विनाश नाश को प्राप्त होता है, उसी प्रकार से रस के प्रसङ्ग में भी व्यवस्था समझनी चाहिए ।
से
For Private And Personal
'गन्धो घ्राणग्राह्य : ' ( उक्त गुणों में से ) केवल गन्ध का ही ग्रहण घ्राणेन्द्रिय से होता है, अतः घ्राण से जिस गुण का प्रत्यक्ष हो वही 'गन्ध' है । ( प्र० ) ( गन्ध का ही प्रत्यक्ष घ्राण से होता है ) यह नियम क्यों ? ( उ० ) स्वाभाविक नियम के अनुसार गन्ध का ही यह स्वभाव निर्णीत होता है कि गुणों में से केवल वही घ्राणेन्द्रिय के द्वारा गृहीत होता है कोई और गुण नहीं, क्योंकि प्रत्यक्ष और अनुमान के द्वारा