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न्याय कन्दलीसंवलित प्रशस्तपादभाष्यम्
प्रशस्तपादभाष्यम्
रसो
निमित्तं
रसनग्राह्यः रसन सहकारी अस्यापि नित्यानित्यत्वनिष्पत्तयो रूपवत् ।
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पृथिव्युदकवृत्तिर्जीवन पुष्टिबलारोग्य मधुगम्ललवणतिक्तकटुकषायभेदभिन्नः ।
न्यायकन्दली
[ गुणस्पर्श
रसनेन्द्रिय से गृहीत होनेवाला ( गुण ही ) 'रस' है । वह पृथिवी और जल इन दो द्रव्यों में ही रहता है, एवं जीवन, पुष्टि, बल और आरोग्य का कारण है । प्रत्यक्ष के उत्पादन में रसनेन्द्रिय का सहायक है । वह मधुर, अम्ल, लवण, कटु, कषाय और तिक्त भेद से छः प्रकार का है । नित्यत्व एवं अनित्यत्व के प्रसङ्ग में इसकी सभी बातें रूप की तरह है ।
निवृत्तौ चानिवृत्तिर्न तयोस्तादात्म्यमिति प्रक्रियेयम् । न चात्यन्तभेदे पृथगुपलम्भ प्रसङ्गः, सर्वदा रूपस्य द्रव्याश्रितत्वात् । एतदेव कथम् ? वस्तुस्वाभाव्यादिति कृतं गुरुप्रतिकूलवादेन ।
सम्प्रति बाहाँकै केन्द्रियग्राह्यस्य
प्रत्यक्षद्रव्यवृत्तविशेषगुणस्य निरूपणप्रसङ्गेन रसगन्धयोव्र्व्याख्यातव्ययोरुभयद्रव्यवृत्तित्वविशेषेणादौ रूपं व्याख्याय रसं व्याचष्टे - रसो रसनग्राह्य इति । गुणेषु मध्ये रस एव रसनग्राह्यो रसनग्राह्य एत रसः । पृथिव्युदक् वृत्तिः । पृथिव्युदकयोरेव वर्त्तते । जीवनपुष्टिबला
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ही जिसकी उत्पत्ति सिद्ध नहीं हो जाती एवं जिसके विनाश से ही जिसका विनाश सिद्ध नहीं हो जाता वे दोनों अभिन्न नहीं हो सकते । ( प्र० ) अगर रूप और द्रव्य अत्यन्त भिन्न हैं तो द्रव्य को छोड़ कर भी रूप की प्रतीति होनी चाहिए । (उ० ) नहीं, क्योंकि रूप सभी कालों में द्रव्य में ही रहता है । ( प्र०) यहीं क्यों होता है ? ( उ० ) यह तो वस्तुओं का स्वभाव है । गुरुचरणों के विरुद्ध व्यर्थ की बातों को बढ़ाना व्यर्थ है ।
प्रत्यक्ष योग्य द्रव्यों में ही रहने
अब एक ही बाह्य इन्द्रिय से गृहीत होनेवाले एवं वाले गुणों का निरूपण करना है । इस प्रसङ्ग में रस और समान रूप से प्राप्त हो जाती है, किन्तु इन दोनों में और रस दो द्रव्यों में, इस विशेष के कारण रूप के निरूपण से पहिले 'रसो रसनग्राह्य', इत्यादि से रस से केवल रस ही रसनेन्द्रिय से गृहीत होता है, अतः रसनेन्द्रिय से गृहीत होनेवाला गुण ही रस है । पृथिव्युदकवृत्तिः' अर्थात् यह पृथिवी और जल इन दो द्रव्यों में रहता है । 'जीवनबलारोग्यनिमित्तम् प्राण के धारण को 'जीवन' कहते हैं। शरीर के अवयवों की वृद्धि ही 'पुष्टि' है । विशेष प्रकार के उत्साह को 'बल' कहते
गन्ध इन दोनों की व्याख्या गन्ध एक ही द्रव्य में निरूपण के बाद और का निरूपण करते हैं ।
रहता है गन्ध के
गुणों में