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न्यायकन्दलीसंलितप्रशस्तपादभाष्यम्
[गुणसाधर्म्यवैधर्म्य
प्रशस्तपादभाष्यम् बुद्धिसुखदुःखेच्छाद्वेषप्रयत्नधर्माधर्मभावनानां निमित्तकारणत्वम् । संयोगविभागोष्णस्पर्शगुरुत्वद्रवत्ववेगानामुभयथा कारणत्वम् ।
बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म और भावना ये सभी निमित्तकारण ( ही ) होते हैं।
__ संयोग, विभाग, उष्ण स्पर्श, गुरुत्व, द्रवत्व और वेग ये छ: गुण असमवायिकारण भी हैं और निमित्तकारण भी।
न्यायकन्दली समवायिकारणसमवायादसमवायिकारणता, आकाशाश्रितेनाकाशे एव शब्दान्तरारम्भात् । सङ्घयापृथक्त्वयोरुभयथा कारणत्वम्, कारणवतिनोस्तयोः कार्ये यथासङ्खयमेकत्वैकपृथक्त्वारम्भकत्वात्, स्वाश्रये द्वित्वद्विपृथक्त्वजनकत्वात् ।
बुद्धयादीनां निमित्तकारणत्वम् । तेषां निमित्तकारणत्वमेवेत्यर्थः ।
संयोगविभागोष्णस्पर्शगुरुत्वद्रवत्ववेगानामुभयथा कारणत्वम् । असमवायिकारणत्वं निमित्तकारणत्वं चेत्यर्थः । तथा हि-भेरीदण्डसंयोगः शब्दोत्पत्तौ निमित्तं भेर्याकाशसंयोगोऽसमवायिकारणम् । एवं विभागे दलविभागो निमित्तं वंशदलाकाशविभागोऽसमवायिकारणम् । उष्णस्पर्श उष्णस्पर्शस्यासमवायिकारणं पाकजानां निमित्तकारणम् । गुरुत्वं स्वाश्रये पतनस्यासमवायि
शब्द अपने कार्य के समवायिकारण ( आकाश ) में रहने से ही असमवायिकारण है, क्योंकि आकाश में रहने वाले शब्द से आकाश में ही शब्दों की उत्पत्ति होती है । संख्या एवं पृथक्त्व ये दोनों ही प्रकार से असमवायिकारण होते हैं, क्योंकि (कारणगत ) ये दोनों कार्यगत एकत्व एवं पृथक्त्व के कारण है, एवं अपने ही समवायिकारणरूप आश्रय में ही द्वित्व या द्विपृथक्त्व के कारण हैं ।
बुद्धि प्रभृति इन नौ गुणों का निमित्तकारण व साधर्म्य है, अर्थात् ये निमित्त कारण ही होते हैं (असमवायिकारण भी नहीं )।
संयोग, विभाग, उष्ण स्पर्श, गुरुत्व, द्रवत्व और वेग इन छः गुणों का 'उभयथा कारणत्य' साधर्म्य है, अर्थात् ये सभी गुण असमवायिकारण और निमित्तकारण दोनों ही होते हैं। भरी और आकाश का संयोग शब्द का असमवायिकारण है, एवं भेरी और आकाश का संयोग शब्द का ही निमित्तकारण है, एवं विभाग में भी ( उभयथा कारणत्व ) है, क्योंकि बाँस के दोनों दलों का विभाग शब्द का निमित्तकारण है, एवं बांस के दल और आकाश का विभाग शब्द का ही असमवायिकारण भी है । ( कारणगत ) उष्ण स्पर्श (कार्यगत) उष्ण स्पर्श का असमवायिकारण हैं, एवं पाकज रूपादि का निमित्त
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