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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम
[गुणधर्माधर्म्य
न्यायकन्दली
हि वर्तमानकालविशिष्टता सा चार्थस्य स्वाभाविकी, न ज्ञानेन क्रियते किन्तु प्रतीयते।
योऽपि हि विषयसंवेदनानुमेयं ज्ञानमिच्छति, सोऽप्येवं पर्यनुयोज्य:किं विषयसंवेदनमात्मनि समवैति ? विषये वा ? न तावद्विषये, तच्चैतन्यप्रतिषेधात् । अथात्मनि समवैति ? ततः किमन्यद्विज्ञानं यदस्यानुमेयम् । अस्य कारणं ज्ञातृव्यापारलक्षणं तदिति चेत् ? ततिक नित्यम् ? अनित्यं वा? यद्यनित्यं तदुत्पत्तावपि कारणं वाच्यम् । विषयेन्द्रियादिसहकारी ज्ञानमनःसंयोगोऽस्य कारणमिति चेत् ? सेव सामग्री विषयसंवेदनोत्पत्तावस्तु किमन्तर्गडुनानेन ? अथ तन्नित्यम् ? कादाचित्कविषयेन्द्रियसंनिकर्षादिसहकारि कादाचित्कं विषयसंवेदनं करोतीत्यभ्युपगः, तदस्याप्यागन्तुककारणकलापादेव विषयसंवेदनोत्पत्तिसिद्धौ तत्कल्पनावैयर्थ्यम् ? विषयसंवेदनादेवार्थावबोधस्य तत्पूर्वकस्य व्यवहारस्य च सिद्धः ।
वर्तमानकालावच्छिन्नता है। यह उनका स्वाभाविक धर्म है, यह धर्म ज्ञान से उत्पन्न नहीं होता, ज्ञान के द्वारा प्रतीत भर होता है ।
___ जो कोई विषयसवेदन ज्ञान का अनुमान मानते हैं, उन्हें इस प्रकार पराजित करना चाहिये कि यह 'विषयसंवेदन' समवाय सम्बन्ध से आत्मा में रहता है ? या विषयों में ? विषयों में तो रह सकता नहीं, क्योंकि विषयों में चैतन्य का खण्डन कर चुके हैं ( देखिए आत्मनिरूपण पृ० १७१)। अगर यह समवाय सम्बन्ध से आत्मा में रहता है तो फिर ज्ञान उससे भिन्न कौन सी वस्तु है ? जिसका विषयसंवेदन से अनुमान होता है। (५०) अनुमेयज्ञान एवं विषयसंवेदन ये दोनों भिन्न हैं, क्योंकि ( अनुमेय ) ज्ञान विषयसंवेदन का कारण और ज्ञाता का व्यापार है। (उ०) विषयसंवेदन का कारणीभूत ज्ञान नित्य है ? अथवा अनित्य ? अगर अनित्य है तो फिर उसकी उत्पत्ति के लिए भी अलग से कारण कहना पडेगा। विषय एवं इन्द्रियादि सहकारियों से युक्त ज्ञाता के मनःसंयोग को अगर उसका कारण मानें, तो फिर इन्हीं कारणों के समूह से विषयसंवेदन की भी उपपत्ति मानिये । विषयसंवेदन के उत्पादक कारणों की पंक्ति में उस ज्ञान को बिठाने की क्या आवश्यकता है ? अगर उस अनुमेय ज्ञान को नित्य मानते हैं और विषय एवं इन्द्रियादि सहकारियों के रहने और नहीं रहने से विषयसंवेदन के कादाचित्कत्व ( कभी होना कभी नहीं ) का निर्वाह करते हैं, तो फिर विषयसंवेदन के कादाचित्कत्व के प्रयोजक इन्द्रियादि रूप कारणों से ही विषयसंवेदन की उत्पत्ति मान लीजिए। इस तरह के ज्ञान की कल्पना हो व्यर्थ है जो विषयसंवेदन से अनुमेय हो
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