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२३१
प्रकरणम् ]
भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम् सङ्ख्यापरिमाणपृथक्त्वसंयोगविभागपरत्वापरत्वगुरुत्वनैमित्तिकद्रत्ववेगाः सामान्यगणाः।
शब्दस्पर्शरूपरसगन्धा बाथै कैकेन्द्रियग्राह्याः ।
संख्या, परिमाण, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, गुरुत्व, नैमित्तिक द्रवत्व और वेग ये ( ग्यारह ) सामान्य गुण हैं।
शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध इन पाँच में से प्रत्येक एक ही इन्द्रिय से गुहीत होता है, एवं बाह्य इन्द्रिय से ही गृहीत होता है।
न्यायकन्दली द्वयवच्छिन्दन्ति न संख्यादयः, तेषां स्वतो विशेषाभावात् । यस्तु तेषां विशेषः स आश्रयविशेषकृतः एवेति बोद्धव्यम् ।
संख्यादयः सामान्यगुणाः । सामान्याय स्वाश्रयसाधर्माय गुणाः, न स्वाश्रयविशेषायेत्यर्थः । नन्वणुपरिमाणं परमाणूनां व्यवस्थापकम् ? न, जात्यन्तरपरमाणुसाधारणत्वात् । सांसिद्धिकद्रवत्वमपां विशेषगुण एव तेन नैमित्तिकग्रहणम् ।
शब्दस्पर्शरूपरसगन्धा बाह्यकैकेन्द्रियग्राह्याः । बाह्यानीन्द्रियाणि चक्षुरादीनि बाह्यर्थप्रकाशकत्वात् । तैः प्रत्येकं रूपादयो गृह्यन्ते। वे ही 'वैशेषिक गुण' हैं, जैसे कि रूपादि। ये अपने आश्रयों को औरों से भिन्न रूप में समझाते हैं । संख्यादि सामान्य गुण अपने आश्रयों को औरों से भिन्न रूप में नहीं समझा सकते, क्योंकि ( एक द्रव्य की एक संख्या से दूसरे द्रव्य की उसी संख्या में ) स्वतः कोई अन्तर अर्थात् विशेष नहीं है। उन दोनों संख्याओं में जो कुछ अन्तर है उसे आश्रय के विशेषों से ही समझना चाहिए।
ऊपर कहे हुए संख्यादि सामान्य गुण हैं। अर्थात् 'सामान्याय गुणा:' इस व्युत्पत्ति के अनुसार कथित संख्या दि 'सामान्य' अर्थात् अपने आध्यों में परस्पर साधर्म्य प्रतीति के ही कारणीभूत गुण हैं, इनसे इनके आश्रयों में परस्पर विभिन्नता की प्रतीति नहीं होती है। (प्र.) अणु परिमाण तो परमाणुओं का व्यवस्थापक है, अर्थात् और परि. माणवालों से विभिन्नत्व बुद्धि का कारण है ? ( उ० ) नहीं, अणु परिमाण भी विभिन्न जातीय परमाणुओं में समान रूप से रहने के कारण परस्पर (परमाणुत्व रूप) साधर्म्य. बुद्धि का ही कारग है। सांसिद्धिक ( स्वाभाविक ) द्रवत्व जल का विशेष गुण है, अतः नैमित्तिक द्रवत्व को ही सामान्य गुणो में गिनाया है।
____ शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध ये पाँच गुण 'बाह्य कैकेन्द्रियग्राह्य' हैं, अर्थात बाह्य विषयों के ही प्रकाशक होने के कारण चक्षुरादि 'बाह्येन्द्रिय' हैं । शब्दादि में से प्रत्येक
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