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२१९
प्रकरणम् ]
भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम् रूपरसगन्धस्पर्शपरत्वापरत्वगुरुत्वद्वत्वस्नेहवेगा मूर्तगुणाः । बुद्धिसुखदुःखेच्छाद्वेषप्रयत्नधर्माधर्मभावनाशब्दा अमूर्तगुणाः । सङ्ख्थापरिमाणपृथक्त्वसंयोगविभागा उभयगुणाः ।
रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, परत्व, अपरत्व, गुरुत्व, द्रवत्व, स्नेह और वेग ये दस 'मूर्तगुण' ( अर्थात् मूर्त द्रव्यों में ही रहनेवाले गुण ) हैं।
बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म, भावना, और शब्द ये दश 'अमूर्त्तगुण' ( अर्थात् अमूर्त द्रव्यों में ही रहने वाले गुण ) हैं।
संख्या, परिमाण, पृथकत्व, संयोग, और विभाग ये पाँच 'उभयगुण' ( अर्थात् मूर्त्तद्रव्य और अमूर्तद्रव्य दोनों में ही रहनेवाले गुण ) हैं।
न्यायकन्दली सम्प्रति परस्परमेव तेषां साधयं वैधर्म्यञ्च प्रतिपादयन्नाह-रूपेत्यादि । एते मूर्तानामेव गुणा नामूर्तानाम् । तथा हि रूपस्पर्शपरत्वापरत्ववेगाः पृथिव्यादिषु त्रिषु, वायौ रूपवर्जम, रूपस्पर्शवजं मनसि, रसगुरुत्वे पृथिव्युदकयोः, द्रवत्वं पृथिव्युदकतेजस्सु, स्नेहोऽम्भसि, गन्धः पृथिव्याम् ।
अमूर्तगुणान् कथयति---बुद्धिसुखेत्यादि । बुद्धयादयो भावनान्ता आत्मगुणाः । आकाशगुणः शब्दः ।
संख्यापरिमाणपृथक्त्वसंयोगविभागाः उभयगुणाः मूर्त्तामूर्तगुणाः।
अब गुणों में ही परस्पर साधर्म्य और वैधयं का निरूपण करते हुए 'रूप रस' इत्यादि वाक्य लिखते हैं। ये मूर्त (द्रव्यों) के ही गुण हैं, अमूर्त (आकाशादि ) के नहीं। अभिप्राय यह है कि रूप, स्पर्श, परत्व, अपरत्व और वेग ये पाँच गुण ( मिलकर ) पृथिवी, जल और तेज इन तीन द्रव्यों में ही रहते हैं। इनमें से रूप को छोड़कर शेष चार गुण वायु में रहते हैं। कथित पाँच गुणों में से रूप और स्पर्श को छोड़ कर शेष तीन गुण मन में रहते हैं। पृथिवी और जल इन दोनों में ( इन पांच में से ) रस और गुरुत्व ये दो ही गुण हैं । द्रवत्व पृथिवी, जल और तेज इन तीन द्रव्यों में ही रहता है। स्नेह केवल जल में और गन्ध केवल पृथिवी में रहता है।
बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म, भावना और शब्द ये दश अमूत्तं गुण ( अर्थात् मृतं द्रव्य से भिन्न द्रव्यों में ही रहते ) हैं ।
संख्या, परिमाण, पृथक्त्य, संयोग और विभाग ये पाँच 'उभय गुण' अर्थात् मूर्त द्रव्य और अमूर्त द्रव्य दोनों में रहने वाले गुण हैं ।
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