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प्रकरणम् ]
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भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम्
शब्दलिङ्गा विशेशादेकत्वं सिद्धम् । तदनुविधानादेकपृथक्त्वम् । विभववचनात् परममहत्परिमाणम् । शब्दकारणत्ववचनात् संयोगविभागाविति । अतो गुणवत्त्वादनाश्रितत्वाच्च द्रव्यम् । समानासमानजातीय
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सर्वत्र आकाश में चूँकि शब्दरूप चिह्न समान रूप से है, अतः आकाश में एकत्व की सिद्धि होती है। चूँकि आकाश में एकत्व है, अतः एकपृथक्त्व भी है । "विभववान् महानाकाशस्तथा चात्मा' (७।१।२२ ) इस सूत्र के द्वारा आकाश को वैभवयुक्त कहने के कारण इसमें परममहत् परिमाण भी समझना चाहिए । संयोगाद्विभागात् शब्दाच्च शब्दनिष्पत्तिः " ( २२|३१ ) महर्षि ने इस सूत्र द्वारा चूँकि संयोग और विभाग को शब्द का कारण कहा है, अतः उसमें संयोग
के
न्यायकन्दली
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द्रव्यान्तरगुणो न भवति नासौ गुणत्वे सति पृथिव्याद्यष्टद्रव्यानाश्रितो यथा रूपादिरिति व्यतिरेकी ।
सद्भावप्रतिपादकादेव प्रमाणादाकाशस्य शब्दगुणत्वं तावत् प्रतीतम् । सम्प्रति सङ्ख्यादिगुणत्वप्रतिपादनार्थमाह - शब्दलिङ्गाविशेषादिति । शब्दो लिङ्गमाकाशस्य शब्दश्च सर्वत्राविशिष्ट एक इत्येकरूपमेवाकाशं सिद्धयति, भेदप्रतिपादकप्रमाणाभावादित्यर्थः । ननु शब्दोऽपि तारतरादिरूपेण विविध एव ? सत्यम्, न तु तेन रूपेणास्य लिङ्गता, किन्तु गुणत्वेन तच्चाविशिष्टं नाश्रयभेदावगमाय प्रभवति, एकस्मादप्याश्रयात् कारणभेदेन तारतरादिभेदस्य शब्दस्योत्पत्त्यविरोधात् । का गुण नहीं है, वह पृथिवी प्रभृति आठ द्रव्यों में अनाश्रित भी नहीं है, जैसे कि रूपादि । इस प्रकार शब्द आकाश का साधक व्यतिरेकी हेतु है । आकाश की सत्ता ज्ञापक प्रमाण से यह भी ज्ञात हो गया कि शब्द आकाश का गुण है । 'शब्दलिङ्गाविशेषात्' इत्यादि वाक्य से अब यह प्रतिपादन करते हैं कि संख्यादि गुण भी आकाश में हैं । अभिप्राय यह है कि शब्द आकाश का लक्षण है । शब्द सभी स्थानों के आकाश में एक ही प्रकार से है, अतः एक रूप से हो आकाश की सिद्धि होती है, क्योंकि इसमें कोई प्रमाण नहीं है कि 'आकाश परस्पर भिन्न हैं और अनेक हैं । (प्र०) उच्चमन्दादि भेद से शब्द तो अनेक हैं । ( उ० ) यह ठीक है कि उच्चमन्दादि भेद से शब्द अनेक प्रकार के हैं, किन्तु मन्दत्वादि उक्त विभिन्न रूपों से तो वह आकाश का लक्षण नहीं है, गुणत्व रूप से ही शब्द आकाश का लक्षण है । गुणत्व तो सभी शब्दों में समान रूप से ही है । तस्मात् मन्दत्वादि भेद से शब्द का अनेकत्व आकाश के अनेकत्व का ज्ञापक नहीं हो सकता, क्योकि एक ही आश्रय में उक्त अनेक प्रकार के शब्दों की उत्पत्ति हो सकती है, इसमें कोई विरोध नहीं है ।