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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम
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[ द्रव्ये आत्मन्यायकन्दली कारिते । न च तदाश्रयेणासम्बद्धमदृष्टं तयोः कारणं भवितुमर्हति, अतिप्रसङ्गात् । न चात्मसमवेतस्यादृष्टस्य साक्षात् द्रव्यान्तरसम्बन्धो घटत इति स्वाश्रयसम्बन्धद्वारेण तस्य सम्बन्ध इत्यायातम् । ततः समस्तमूर्तद्रव्यसम्बन्धलक्षणमात्मनो विभुत्वं सिद्धयति । स्वभावत एव वहरूप्रज्वलनं नादृष्टादिति चेत् ? कोऽयं स्वभावो नाम ? यदि वह्नित्वमुत दाहकत्वम् ? रूपविशेषो वा ? तप्तायःपिण्डे वह्नेरपि स्यात् । अथेन्धनविशेषप्रभवत्वं स्वभाव इति ? अनिन्धनप्रभवस्य विद्यदादिप्रभवस्य चौ@ज्वलनं न स्यात् । अथातीन्द्रियः कोऽपि स्वभावः कासुचिद् व्यक्तिष्वस्ति यासामूर्ध्वज्वलनं दृश्यत इति, पुरुषगुणे कः प्रद्वेषः ? यस्य कर्मणो गुरुत्वद्रवत्ववेगा न कारणं तस्यात्मविशेषगुणादुत्पादः, यथा पाणिकर्मणः पुरुषप्रयत्नात , ऊर्ध्वज्वलनतिर्यकपवनादिनां कर्मणां गुरुत्वादयो न कारणमभावात्, तत्तत्कार्यविपरीतत्वाच्च । तस्मादेषामप्यात्मविशेष
के आश्रयों में असम्बद्ध अदृष्ट उनके कारण नहीं हो सकते, क्योंकि ऐसा मानने से अतिप्रसङ्ग होगा, एवं आत्मा में समवाय सम्बन्ध से रहने के कारण अदृष्ट का बाह्य वस्तुओं के साथ कोई भी साक्षात् सम्बन्ध नहीं हो सकता है, अतः यही मानना पड़ेगा कि अदृष्ट के आश्रय आत्मा के साथ वह्निप्रभृति के सम्बन्ध होते हैं। इस प्रकार तद्गत अदृष्ट के साथ भी उनका परम्परा सम्बन्ध होता है। अतः मूर्त द्रव्यों के साथ आत्मा का सम्बन्ध अवश्य है और सभी मूर्त द्रव्यों के साथ सम्बन्ध ही विभुत्व' है । (प्र.) 'स्वभाव' से ही वह्नि ऊपर की ओर जलती है, इसमें अदृष्ट कारण नहीं है। (उ०) 'स्वभाव' शब्द का यहाँ क्या अर्थ है ? 'स्व' वह्नि का जो 'भाव' अर्थात् धर्म वह तो (१) वह्नित्व (२) दाहकत्व और (३) विशेष प्रकार का रूप ये तीन ही हैं, 'स्वभाव' शब्द से इन तीनों धर्मों को कारण मानने से तपे हुए लोहे का भी ऊज्वलन मानना पड़ेगा, क्योंकि उसमें भी स्वभाव शब्द के उक्त तीनों अर्थ हैं । (प्र.) लकड़ी की आग ही ऊपर को तरफ जलती है, अतः वह्नि का लकड़ी से उत्पन्न होना ही ऊर्ध्वज्वलन का कारणोभूत 'स्वभाव' है। (उ०) फिर इन्धन के बिना ही उत्पन्न विद्युत् प्रभृति वह्नि का ऊर्ध्वज्वलन नहीं होगा। अगर किसी वह्नि में कोई ऐसी अतीन्द्रिय सामर्थ्य मानते हैं, जिससे उसी वह्नि में ऊर्ध्वज्वलन होता है, तो फिर जीव के अतीन्द्रिय धर्म रूप अदृष्ट को ही अगर ऊध्र्वज्वलन का कारण मानते हैं तो आपको क्यों जलन होती है ? जिस क्रिया का कारण गुरुत्व, द्रवत्व और वेग नहीं है, वह क्रिया आत्मा के विशेष गुण से ही उत्पन्न होती है, जैसे कि पुरुष के प्रयत्न से उत्पन्न हाथ की क्रिया । गुरुत्व, द्रवत्व या वेग वह्नि के ऊर्ध्वज्वलन या वायु की कुटिलगति रूप क्रिया के कारण नहीं हैं, क्योंकि वे वहाँ नहीं है, एवं उनसे होनेवाली क्रियायें भी
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