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१७७
प्रकरणम् ]
भाषानुवादसहितम्
न्यायकन्दली असमर्थस्य कालान्तरेऽप्यजनकत्वस्वभावस्यानतिवृत्तेः । क्रमवत्सहकारिलाभात्क्रमेण करणं तस्येति चेत् ?
अत्र वदन्ति-यदि सहकारिणो भावातिशयं न जनयन्ति, नापेक्षणीयाः, अकञ्चित्किरत्वात् । जनयन्ति चेत् ? स किं तावद्वयतिरिक्तः ? अव्यतिरिक्तो वा ? व्यतिरेकपक्षे तावदतिशयादेवागन्तुकादन्वयव्यतिरेकाभ्यां कार्योत्पत्तिरित्यक्षणिकस्य न हेतृत्वम, सत्यपि तस्मिन्नभावात् । सहकारिकृताशयसहितस्य तस्य जनकत्वमिति चेत् ? अतिशयस्यातिशयान्तरानारम्भे कीदृशी सहायता ? आरम्भे चानवस्थायाः का प्रतिक्रिया ? सहकारिजन्योऽतिशयः स चाक्षणिकस्येति सुभाषितम्, अनुपकार्यानुपकारकयोः सम्बन्धाभावात् । भावादभिन्नोऽतिशयः सहकारिभिः क्रियत इत्यपि न सुपेशलम्, भावस्य को करने का सामर्थ्य है, वह कभी नष्ट नहीं हो सकती है। एवं जो जिस कार्य को करने में असमर्थ है वह कभी उस काम को कर ही नहीं सकता है। क्रमशः कार्य करनेवाले सहकारि कारणों की सहायता से क्रमशः कार्यों की उत्पत्ति होती है।
__ इस प्रसङ्ग में बौद्धगण कहते हैं कि (प्र.) सहकारि कारण मुख्य कारण में किसी विशेष सामर्थ्य का उत्पादन करते हैं या नहीं ? यदि नहीं करते हैं तो फिर उस कार्य के लिए वे अपेक्षित ही नहीं हैं (फलत: कारण ही नहीं हैं ) क्योंकि वे कार्योत्पत्ति के लिए कुछ भी नहीं करते । यदि सहकारि कारण मुख्य कारण में किसी विशेष सामर्थ्य का उत्पदन करते हैं तो फिर यह पूछना है कि यह सामर्थ्य क्या अपने आश्रयीभूत मुख्य कारण से भिन्न है. या अभिन्न ? यदि भिन्न है तो फिर कार्य की उत्पत्ति उसी से होगी, क्योंकि कार्य का अन्वय और व्यतिरेक उसी के साथ है। इस से यह सिद्ध होता है कि अक्षणिक वस्तुओं से कार्यों की उत्पत्ति नहीं होती है, क्योंकि उनके रहते हुए भी (क्षणिक उस शकिा के विना) कार्यों की उत्पत्ति नहीं होती है। ( उ०) सहकारी कारणों से विलक्षण शक्ति की उत्पत्ति होती है एवं उस शक्ति से युक्त बीजादि ही कारण हैं। (प्र०) यह अतिशय' ( विलक्षण सामर्थ्य ) उन बीजादि बस्तुओं में किसी दूसरे अतिशय को जन्म देता है या नहीं ? अगर नहीं तो फिर सहायता कैसी ? अगर हाँ ? तो अनवस्था दोष का क्या परिहार होगा ? यद्यपि यह कहना ठीक सा लगता है कि सहकारियों से अतिशय की उत्पत्ति अवश्य होती है किन्तु वह क्षणिक वस्तुओं का धर्म नहीं है, किन्तु अक्षणिकों का धर्म है। यह कहता भी ठीक नहीं हैं कि वह अतिशय या सामर्थ्य विशेष सहकारियों से अवश्य ही उत्पन्न होता है, एवं वह अपने
१. अभिप्राय यह है कि बीजादि में सर्वदा अङकुरादि के उत्पन्न का सामर्थ्य है ही। जब उसे खेत, पानी प्रभृति सहकारियों की सहायता पहुंचती है तभी उन से अकुरादि कार्यों की उत्पत्ति होती है ।
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