________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
२०६
प्रकरणम् ]
भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम् प्रयत्नान्ताः सिद्धाः। धर्माधर्मावात्मान्तरगुणानामकारणत्ववचनात् । संस्कारः, स्मृत्युत्पत्ती कारणवचनात् । व्यवस्थावचनात् सङ्ख्या । छः गुण आत्मा में कहे गये हैं। यतः “आत्मान्तरगुणानामात्मान्तरेऽकारणत्वात्' (६।१।१५) इस सूत्र के द्वारा एक आत्मा के गुणों को दूसरी आत्मा के गुणों का अकारण कहा गया है, इससे सिद्ध होता है कि धर्म और अधर्म ये दोनों भी आत्मा के गुण हैं । महर्षि ने 'आत्ममनसोः संयोगविशेषात्संस्काराच्च स्मृति:" (६।२।६) इस सूत्र के द्वारा संस्कार को स्मृति का कारण कहा है, अत: आत्मा में संस्कार नामक गुण का रहना भी उनको अभिप्रेत समझना चाहिए। "व्यवस्थातो नाना" ( ३।२।२० ) सूत्रकार की इस उक्ति से आत्मा में संख्या की सिद्धि समझनी
न्यायकन्दली "आत्मान्तरगुणानामात्मान्तरगुणेष्वकारणत्वात" इति । अस्यायमर्थः-आत्मान्तरगुणानां सुखादीनामात्मान्तरगुणेषु सुखादिषु कारणत्वाभावाद्धर्माधर्मयो. रन्यत्र वर्तमानयोरन्यत्रारम्भकत्वमयुक्तमिति । एतेन धर्माधर्मयोरात्मगुणत्वं कथितम्, अन्यथा तयोः सुखादिसाधर्म्यकथनेनानारम्भकत्वसमर्थनं न स्यात् । संस्कारः स्मृत्युत्पत्ताविति ।आत्ममनसोः संयोगात्संस्काराच्चेति स्मृतिसूत्रं लक्षयति। पूर्वानुभूतोऽर्थः स्मर्य्यते, न तत्रानुभव: कारणम्, चिरविनष्टत्वात् , नाप्यनुभवाभाव: कारणमभावस्य निरतिशयत्वेन पटुमन्दादिभेदानुपपत्तेरभ्यासवैयर्थ्याच्च । दूसरी आत्मा में सुख का उत्पादन नहीं कर सकता है, वैसे ही एक आत्मा का धर्म या अधर्म दूसरी आत्मा में धर्म या अधर्म को भी उत्पन्न नहीं कर सकता। इससे यह कथित हो जाता है कि 'धर्म और अधर्म आत्मा के गुण हैं। अगर ये आत्मा के गुण न हों तो फिर जैसे एक आत्मा में रहनेवाले सुखादि दूसरी आत्मा में सुखादि के उत्पादक नहीं हैं, वैसे ही धर्म और अधर्म भी, तथा एक आत्मा में रहनेवाले सुखादि भी, इस सादृश्य से दूसरी आत्मा में अधर्मादि के उत्पन्न न होने का समर्थन असङ्गत हो जायगा। महर्षि कणाद ने संस्कार को स्मृति का कारण कहा है, अतः आत्मा में संस्कार (भावना नाम का) गुण भी समझना चाहिए । 'संस्कारः' इत्यादि भाष्य की पंक्ति "आत्ममनसोः संयोगात्संस्का. राच्च स्मृतिः" (६।२।६) इस सुत्र की ओर सङ्केत करती है । पूर्वकाल में अनुभूत विषय की ही स्मृति होती है। स्मृति के प्रति पूर्वानुभव कारण नहीं हो सकता है, क्योंकि स्मति की उत्पत्ति से बहुत पहिले वह नष्ट हो जाता है। उस अनुभव का नाश भी उसका कारण नहीं हो सकता है, क्योंकि अभाव में अर्थात् अनुभवनाशजनित अनुभव की असत्ता रूप
२७
For Private And Personal