________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम
२१.
[ द्रव्ये आत्मन्यायकन्दली तस्मादनुभवेनात्मनि कश्चिदतिशयः कृतो यतः स्मरणं स्यादिति संस्कारकल्पना । ये तु विनष्टमप्यनुभवमेव स्मृतेः कारणमाहुः, तेषां विनष्टमेव ज्योतिष्टोमादिकं स्वर्गादिफलस्य साधनं भविष्यतीत्यदृष्टस्याप्युच्छेदः स्यात् । व्यवस्थावचनात् संख्येति । "नानात्मानो व्यवस्थातः" इति सूत्रेणात्मनानात्वप्रति. पादनाद् बहुत्वसङ्ख्या सिद्धेत्यर्थः ।
____ अथ केयं व्यवस्था ? नानाभेदभाविनां ज्ञानसुखादीनामप्रतिसन्धानम् , ऐकात्म्ये हि यथा बाल्यावस्थायामनुभूतं वृद्धावस्थायामनुसन्धीयते मम सुखमासीन्मम दुःखमासीदिति, एवं देहान्तरानुभूतमप्यनुसन्धीयते, अनुभवितुरेकत्वात् । न चैवमस्ति, अत: प्रतिशरीरं नानात्मानः । यथा सर्वत्रैकस्याकाशस्य श्रोत्रत्वे कर्णशष्कुल्याद्युपाधिभेदाच्छन्दोपलब्धिव्यवस्था,
अभाव में और अनुभव की अनुत्पत्तिमूलक अनुभव की असत्ता रूप अभाव में कोई भा अन्तर नहीं है, अतः अधिक काल तक स्मरण रखने से 'पटु' और थोड़े समय तक स्मरण रखने से मन्द, इस प्रकार की दोनों स्मृतियों में कोई अन्तर नहीं रहेगा । एवं चिरकाल तक स्मरण रखने के लिए अभ्यास की भी जरूरत न रह जायगी अतः संस्कार रूप अतिशय की कल्पना की जाती है। जो कोई विनष्ट अनुभव को ही स्मति का कारण मानते हैं, उनके मत में विनष्ट ज्योतिष्टोमादि याग से ही स्वर्गादि की उत्पत्ति माननी पड़ेगी। अतः उनके मत में धर्म और अधर्म इन दोनों को भी मानने की आवश्यकता नहीं रहेगी। 'व्यवस्था के रहने से संख्या भी' अर्थात् "व्यवस्थातो नाना" (२२।२०) इस सत्र से आत्मा में नानात्व की सिद्धि की गयी है। इससे आत्मा में बहुत्व संख्या की भी सिद्धि होती है ।
(प्र०) (आत्मा अनेक हैं) इसमें क्या युक्ति है ? (उ०) यही कि एक के ज्ञानसुखादि का दूसरे को स्मरण नहीं होता है। अर्थात् आत्मा अगर एक माना जाय तो फिर बाल्यावस्था में विषय का जैसे वृद्धावस्था में स्मरण होता है कि 'मुझे दुःख था, मुझे सुख था' वैसे ही और देहों के द्वारा अनुभून विषयों का स्मरण भी हो, क्योंकि अनुभव करने वाला आत्मा सभी देहों में एक ही है, किन्तु ऐसा नहीं होता। अतः प्रत्येक शरीर में रहनेवाले आत्मा भिन्न-भिन्न हैं । ( प्र०) जैसे यह नियम है कि आकाश के एक होने पर भी कर्णशष्कुली रूप उपाधि से युक्त आकाश से ही शब्द सुना जाता है, वैसे ही आत्मा के एक होने पर भी जिस देह रूप उपाधि से युक्त होकर वह (आत्मा) जिन सुखादि का अनुभव करता है, उस देह रूप उपाधि से युक्त आत्मा ही उन सुखादि का स्मरण भी करेगा दूसरा नहीं, यह व्यवस्था भी की जा सकती है। ( इस
For Private And Personal