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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम
[द्रव्ये आत्म
प्रशस्तपादभाष्यम् त्वात् गृहपतिरिव, अभिमतविषयग्राहककरणसम्बन्धनिमित्तेन मन:कम्म॑णा गृहकोणेषु पेलकप्रेरक इव दारकः, नयनविषयालोचनानन्तरं रसानुस्मृतिक्रमेण रसनविक्रियादर्शनादनेकगवाक्षान्तर्गतप्रेक्षकवदुभयदशी कश्चिदेको विज्ञायते । सुखदुःखेच्छाद्वेषप्रयत्नैश्च गुणैगुण्य नुमीयते । का पुनः संघटन इन दोनों से भी घर के मालिक की तरह प्रयत्न विशिष्ट आत्मा का अनुमान होता है। (७) अभिमत विषयों को ग्रहण करनेवाली चक्षुरादि इन्द्रियों का विषयों के साथ सम्बन्ध करानेवाले मन की क्रिया से भी आत्मा का अनुमान होता है। जैसे घर के एक कोने में रक्खी हुई लाख की गोली पर दूसरी लाख की गोली फेंक कर खेलने वाले लड़के का अनुमान होता है। (८) चाक्षुष ज्ञान के बाद रस की स्मृति के क्रम से रसनेन्द्रिय में विकार देखा जाता है। (अर्थात् मुँह में पानी भर आता है)। इससे भी अनेक गवाक्षों से एक देखने वाले की तरह रूप और रस दोनों के एक ज्ञाता रूप आत्मा का अनुमान होता है। (६) सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष और प्रयत्नादि गुणों से भी गुणी आत्मा का अनुमान होता है। वे (सुखादि)
न्यायकन्दली वृक्षादिगतेन वृद्धयादिना व्यभिचार इति चेन्न, तस्यापीश्वरकृतत्वात्, न तु वृक्षादयः सात्मकाः, बुद्धयाद्युत्पादनसमर्थस्य विशिष्टात्मसम्बन्धस्याभावात् ।
मनोगतिलिङ्गकमनुमानमुपन्यस्सति-अभिमतेत्यादिना। अभिमतो विषयो जिघृक्षितोऽर्थः, तस्य यद्ग्राहकं करणं चक्षुरादि तेन योगो मनस्सम्बन्धस्तस्य निमित्तेन मनःकर्मणा । गृहे कोणेषु कोष्ठेषु भूमौ रोपितं पेलकं प्रति हस्तस्थितस्य पेलकस्य प्रेरको दारक इव प्रयत्नवान् मनः प्रेरकोऽनुमीयते । प्रयत्नकिसी प्रयत्नवान के द्वारा उत्पन्न होते हैं, क्योंकि वे भी वृद्धि और संरोहण हैं, जैसे कि घर की वृद्धि और टूटे हुए अङ्गों का जुटना । (प्र०) वृक्ष में भी तो ये भग्नक्षत संरोहणादि है ? (उ०) वे भी ईश्वर रूप आत्मा से ही उत्पन्न होते हैं, किन्तु वृक्ष में आत्मा (जीव) का सम्बन्ध नहीं है, क्योंकि आत्मा का वह विलक्षण प्रकार का सम्बन्ध बुद्धि का कारण है, किन्तु विलक्षण सम्बन्ध वृक्षादि में नहीं है।
__'अभिमत' इत्यादि से मनोगतिहेतुक आत्मा का अनुमान दिखलाते हैं। 'अभिमतविषय' अर्थात् जिस विषय को लेने की इच्छा हो, उस वस्तु के ज्ञान का उस बस्तु के साथ एवं चक्षुरादि विषयों के साथ 'योग' अर्थात् मन का संयोग है। इस सम्बन्ध के कारण मन की क्रिया से भी ( आत्मा का अनुमान होता है )। 'घर में' अर्थात् घर के कोने में, अथवा भूमि में गड़े हुए एक लाह की गोली पर जब बालक अपने हाथ की दूसरी गोली चलाता है, तब उस दूसरी गोली की क्रिया से
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