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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [द्रव्ये आत्म
न्यायकन्दली किन्तु प्राक्तनबुद्धिवेद्यो नीलादिक्षणोऽधुनातनबुद्धिवेद्यान्नीलक्षणादभेदेनारोप्यमाणोऽक्षणिक इत्युच्यते । भेदेन व्यवस्थाप्यमाणश्च क्षणिक इति। तत्र नीलादिष्वेव क्रमानमव्यावृत्त्या सत्त्वाभावप्रतीतिः । यदि पूर्वोपलब्धक्षण एवायमुपलभ्यते तदा सम्प्रतितनीमर्थक्रियां प्रागेव कुर्यात्, प्राक्तनी वा सम्प्रत्येव, न पुनः क्रमेण कुर्यात्, एकस्य कारकत्वाकारकत्वविरोधात् । नापि सर्व पूर्वमेव कुर्यात्, सम्प्रत्यर्थक्रियारहितस्यासत्त्वप्रसङ्गादिति । तत्रापि किमेवं सत्त्वस्य हेतोर्वास्तवो विपक्षो दर्शितः ? कल्पनासमारोपितो वा समर्थितः ? न तावद्वास्तवो विपक्षः,नीलादीनामक्षणिकस्यावास्तवत्वात्, तस्मादनुमानाद्वास्तवीमर्थगतिमिच्छता लिङ्गस्य त्रैरूप्यविनिश्चयार्थ धूमानुमानवत् सर्वत्र प्रमाणसिद्धः पक्षादिभावो दर्शयितव्यः, न कल्पनामात्रेण । न चाक्षणिकस्तथाभूतोऽस्तीति व्यतिरेकासिद्धिः । तदसिद्धावन्वयस्याप्यसिद्धिस्तस्यास्तत्पूर्वकत्वादित्यसाधारणत्वं हेतोः ।
बुद्धि के द्वारा ज्ञात क्षण का अभेदभ्रम होता है तभी नीलादि अक्षणिक (स्थिर ) कहलाते हैं। जब वे ही क्षण भिन्न भिन्न रूप से ज्ञात होते हैं तभी नीलादि क्षणिक कहलाते हैं। यही स्थिर रूप से अभिमत नीलादि न क्रमशः कार्यों का उत्पादन कर सकते हैं, न एक ही समय में (युगपत् ) कार्यों का उत्पादन कर सकते हैं। इस (क्रम योगपद्याभाव ) की प्रतीति से स्थिर रूप से अभिमत नीलादि में ही सत्त्व के अभाव की प्रतीति होगी। क्योंकि अगर पहिले के ज्ञात क्षण में ही नीलादि की प्रतीतियाँ होती हैं, तो फिर वह (क्षण ) अभी उत्पन्न होने वाले कार्यों को पहिले ही उत्पन्न करता, या पहिले उत्पन्न होनेवाले काय को अभी उत्पन्न करता। किन्तु क्रमशः तो वह कार्यों का उत्पादन कर नहीं सकता है, क्योंकि एक ही वस्तु में कारकत्व एवं अकारकत्व दोनों विरुद्ध धर्मों का समावेश असम्भव है। यह भी सम्भावना नहीं है कि सभी कार्यों को पहिले ही कर देता है तब तो इस समय अर्थ क्रिया से रहित होने के कारण वस्तु की (वर्तमान काल में सत्ता ही) उठ जायगी। ( उ० ) आप के प्रदर्शित विपक्ष की (स्थिरत्वेन व्यवहृत नीलादि की) सत्ता यथार्थ है ? या काल्पनिक ? इस की सत्ता वास्तविक तो है नहीं, क्योंकि उक्त नीलादि का अक्षणिकत्व ( आप के मत से) अवास्तविक है। अतः अनुमान के द्वारा वास्तव वस्तुओं की सिद्धि की इच्छा रखनेवाले को चाहिए कि हेतु के तीनों रूपों (पक्षसत्त्व, सपक्षसत्त्व, एवं विपक्षासत्त्व) के निश्चय के लिए धूमानुमान की तरह पक्षादि (पक्ष, सपक्ष, एवं विपक्ष) की काल्पनिक नहीं, वास्तविक सत्ता दिखलावे, किन्तु आप के मत से अक्षणिक वस्तुओं की वास्तविक सत्ता है नहीं। फलतः व्यतिरेक व्याप्ति भी नहीं बन सकती है। (क्योंकि विपक्ष असिद्ध है) इसी तरह अन्वय व्याप्ति भी नहीं बन सकती है,
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