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प्रकरणम् ]
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भाषानुवादसहितम् न्यायकन्दली
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१८३
अपि च बाधकेनाक्षणिकात् सत्त्वव्यतिरेकः प्रसाधितः, क्षणिकत्वसत्त्वयोरन्वयः कुतः सिद्धयति ? न च तत्र विपक्षव्यावृत्तिमात्रेण हेतुत्वमसाधारणस्यापि हेतुत्वप्रसङ्गात् । केवलव्यतिरेक्यनुमानञ्च स्वयमनिष्टम् । अक्षणिकेऽपि सत्त्वं न भवतीत्यवस्थापितेऽर्थात् क्षणिकाश्रयं सत्त्वमित्यन्वयसिद्धिरिति चेत् ? न तावदर्थादिति सत्त्वस्य हेतोः परामर्शः, असिद्धान्वयस्य तस्याद्यापि हेतुत्वाभावात् । बाधकमेव तूभयव्यापारं प्रमाणन्तरं व्याप्ति प्रसाधयद् द्वादशायतनेष्वेव प्रसाधनविषयाया व्याप्तेः प्रत्येतुमशक्यत्वात्, द्वादशायतनव्यतिरिक्तस्य चार्थस्याभावात् । तेषु चान्वयप्रतीतौ क्षणिकत्वस्यापि प्रतीति:, सम्बन्धिप्रतीतिनान्तरीयकत्वात् सम्बन्धप्रतीतेरिति सत्त्ववैयर्थ्यम् । पक्षे सामान्येन व्याप्तिग्रहणं, विशेषे सत्त्वस्य हेतुत्वमिति चेन्न, निर्विशेषस्य सामान्यस्य प्रतीतेरभावात् । विशेष
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क्योंकि अन्वयव्याप्ति में भी विपक्ष का ज्ञान आवश्यक है । अतः कथित सत्त्व रूप हेतु ( केवल पक्ष में ही रहने के कारण ) असाधारण नाम का हेत्वाभास है । और भी बात है कि ( कार्यकारणभाव की अनुपपत्ति रूप ) बाघ मूलक अक्षणिकत्व हेतु से विपक्ष में असस्त्र रूप साध्य के अभाव का आपने निश्चय किया है, किन्तु क्षणिकत्व और सत्व में ( नियत ) सामानाधिकरण्य रूप अन्वय ( व्याप्ति ) किस हेतु से सिद्ध होगा ? केवल विपक्ष में न रहने से ही हेतु साध्य का साधन नहीं कर सकता है । क्योंकि इस प्रकार तो असाधारण हेत्वाभास से भी यथार्थ अनुमिति की आपत्ति होगी । केवल व्यतिरेकी अनुमान तो स्वयं ही दूषित है ( प्र०) अक्षणिकों ( स्थिरों) में सत्त्व नहीं है' यह सिद्ध हो जाने पर यह 'अन्वय' अर्थात् सिद्ध हो जाता है कि 'सत्त्व क्षणिक वस्तुओं में ही है । ( उ० ) " अर्थात् " पञ्चमी विभक्ति युक्त इस हेतु बोधक पद से 'सत्त्व' हेतु ही अभिप्रेत है, किन्तु अन्वय के असिद्ध होने के कारण उसमें हेतुत्व ही असिद्ध है । ( प्र० ) कथित कार्यकारणभाव की अनुपपत्ति रूप दोष के ही दो व्यापारों की कल्पना करेंगे, एक से अक्षणकों में असत्त्व की सिद्धि होगी और दूसरे से क्षणिकों में सत्त्व को सिद्धि होगी । अथवा वही बाधक अभ्वयसाधक दूसरी व्याप्ति रूप प्रमाण को उपस्थित करता हुआ द्वादशायतनों में ही सत्र को सिद्ध करेगा। क्योंकि व्याप्ति की प्रतीति विषय के विना नहीं हो सकती है । एवं द्वादशायतनों से भिन्न किसी वस्तु की सत्ता है नहीं । उस में अन्वय की प्रतीति से क्षणिकत्व की प्रतीति अवश्य होगी । क्योंकि जहाँ सम्बन्ध की प्रतीति रहेगी वहाँ सम्बन्धियों को भी प्रतीति अवश्य ही रहेगी । अतः पहिले पक्ष में सत्त्वसिद्धि की कोई आवश्यकता नहीं है । व्याप्ति सामान्य रूप से ही गृहीत होगी और सत्त्व हेतु से विशेष की सिद्धि होगी 'अर्थात् उस सामान्य व्याप्ति से ही विशेष तत्तद्व्यक्तियों में सत्त्व की सिद्धि होगी । ( उ० )