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प्रकरणम्
भाषानुवादसहितम्
प्रशस्तपादभाष्यम् संज्ञा भवन्ति-माहेन्द्री, वैश्वानरी, याम्या, नैर्ऋती, वारुणी, वायव्या, कौबेरी, ऐशानी, ब्राह्मी, नागी चेति ।
आत्मत्वाभिसम्बन्धादात्मा । तस्य सौक्ष्म्यादप्रत्यक्षत्वे सति (३) याम्या (४) नैऋती (५) वारुणी (६) वायवी (७) कौबेरी (८) ऐशानी (६) ब्राह्मी और (१०) नागी देवताओ के अधिकारमूलक ये दश (यौगिक) नाम और हैं।
आत्मत्व जांति के सम्बन्ध से 'यह आत्मा है' यह व्यवहार होता है। आत्मत्व जाति ही आत्माओं का असाधारण धर्म है। वह दुर्लक्ष्य होने के
न्यायकन्दली व्यवहारः 'न प्रतीचीशिराः शयीत' इत्यादिः । स्मार्तो व्यवहारः 'आयुष्यं प्राङ्मुखो भुङ्क्ते' इत्यादिः । लोकव्यवहारः 'पूर्व गच्छ, दक्षिणमवलोकय' इत्यादिः। यतो दश संज्ञाः कृतास्ततो भक्त्या उपचारेण दश दिशः सिद्धा व्यवस्थिताः । माहेन्द्रयादिसंज्ञास्तु नार्थान्तरविषयाः, किन्तु तासामेव निमित्तान्तरवशात् प्रवर्तन्त इत्याह-तासामेवेत्यादि । महेन्द्रस्येयमिति माहेन्द्री । वैश्वानरस्येयं वैश्वानरीत्यादि सर्वत्र निर्वचनीयम ।
यस्य तत्त्वज्ञानं निःश्रेयसाय घटते विपर्ययज्ञानं संसारहेतुर्यदर्थानि च भूतानि तत्प्रतिपादनार्थमाह-आत्मत्वाभिसम्बन्धादात्मेति । आत्मत्वं नाम की। श्रोत व्यवहार का उदाहरण है 'न प्रतीचीशिराः शयीत' अर्थात् पश्चिम की तरफ शिर रख कर नहीं सोना चाहिए। स्मार्त व्यवहार का उदाहरण है 'आयुष्यं प्राङ्मुखो भुङ्क्ते' अर्थात् आयु की कामना वाले पुरुष को पूर्वाभिमुख होकर भोजन करना चाहिए इत्यादि । लोक व्यवहार का उदाहरण है पूर्व की ओर जाओ दक्षिण की ओर देखो इत्यादि । यत महर्षियों ने दिशा को दश संज्ञायें बनायी हैं, अत: लक्षणा वृत्ति के द्वारा दिशाओं में भी दशत्व का व्यवहार होता है । माहेन्द्री प्रभृति संज्ञाएँ किसी दूसरी वस्तु की नहीं हैं, वे भी दिशाओं को ही दूसरे निमित्त से समझाती हैं । यही तासामेव' इत्यादि से कहते हैं । 'महेन्द्रस्येयं माहेन्द्री' अर्थात् जिस दिशा के अधिष्ठाता महेन्द्र हों उस दिशा को माहेन्द्री कहते हैं। 'वैश्वानरस्येयं वैश्वानरी' इस व्युत्पति के अनुसार जिस दिशा के अधिष्ठाता वैश्वानर (अग्नि) हों उस दिशा को वैश्वानरी कहते हैं। इसी प्रकार और संज्ञाओं का भी निर्वचन करना चाहिए ।
जिसका तत्त्वज्ञान नि:श्रेयस ( मोक्ष ) का कारण है, एवं जिसका विपर्यय (मिथ्याज्ञान) संसार का कारण है, एवं जिसके उपभोग के लिए ये भौतिक वर्ग हैं, उसी के प्रतिपादन के लिए 'आत्मत्वाभिसम्बन्धादात्मा' यह सन्दर्भ लिखते हैं। 'आत्मत्व'
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