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२५.
न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम्
द्रव्ये आकाश
न्यायकन्दली
अन्यदपि प्रमाणविषयपरिच्छेदमात्रमेवार्थक्रियाया विषयसाध्यत्वात । एकपरिच्छिन्ने द्वितीयस्य साधकतमत्वाभाव इति चेत् ? न, स्वकार्ये तस्यैव साधकतमत्वात् । अन्यथा धारावाहिकं ज्ञानमप्रमाणं स्यात्, विषयस्यानतिरेकात् । प्रतिज्ञानञ्च कालक्षणानाम्मतिसूक्ष्माणामप्रतिभासनात् । न चैवं सत्यनवस्था, उपायाभावे सति विरामादित्यलम्।
__ ननु यदि नाम पृथिव्यादिद्रव्याष्टकगुणः शब्दो न भवति तथाप्याकाशस्य सद्भावे किमायातम् ? तत्राह-परिशेषादिति । गुणः शब्दः, गुणश्च गुणिना बिना न भवति, न चैष पृथिव्यादीनां गुणः, द्रव्यान्तरञ्च नास्ति, तस्माद्यस्यायं गुणस्तदाकाशमिति परिशेषादाकाशस्याधिगमे प्रतिपत्तौ लिङ्गमित्यर्थनिर्देशः । प्रयोगः पुनरेवं द्रव्यान्सरगुणः शब्दो गुणत्वे सति पृथिव्याद्यष्टद्रव्यानाश्रितत्वाद् यस्तु
समाप्ति कभी नहीं होगी, अतः एक हेतु से ज्ञात वस्तु के पुनर्ज्ञापन के लिए दूसरे हेतुओं का प्रयोग व्यर्थ है, क्योंकि अर्थविषयक ज्ञान को छोड़कर हेतु प्रयोग का कोई दूसरा फल भी नहीं है। प्रवृत्ति विषय से होती है, अतः एक प्रमाण से ज्ञात वस्तु के ज्ञान का दूसरा हेतु 'साधकतम' नहीं है। (उ०) (उस प्रमाण से उत्पन्न तद्विषयक दूसरे ज्ञानरूप) अपने कार्य के प्रति वही साधकतम है, अन्यथा सभी धारावाहिक ( कुछ क्षणों तक निरन्तर उत्पन्न होनेवाले एकविषयक अनेक ) ज्ञान अप्रमा हो जायेंगे क्योंकि उन सभी ज्ञानों का विषय एक ही है। प्रत्येक ज्ञान के आश्रयीभूत प्रत्येक क्षण भी उन धारावाहिक ज्ञान में प्रतिभासित नहीं होते, क्योंकि वे अत्यन्त सूक्ष्म हैं। इसी कारण से दूसरे हेतुओं के प्रयोग में अनवस्था दोष भी नहीं है, क्योंकि उपाय के समाप्त हो जानेपर हेतुप्रदर्शन की यह प्रवृत्ति भी समाप्त हो जाएगी। इस विषय में अब इतना ही बहुत है।
शब्द अगर पृथिवी प्रभृति आठ द्रव्यों का गुण न भी हुआ, तथापि इससे यह कैसे समझा जाय कि यह आकाश का ही गुण है ? इसी प्रश्न का उत्तर 'परिशेषात्' इत्यादि से देते हैं। अभिप्राय यह है कि शब्द गुण है, गुण द्रव्य के बिना नहीं रह सकते । शब्द पृथिवी प्रभृति आठ द्रव्यों का गुण नहीं है । इनसे भिन्न कोई द्रव्य (सिद्ध) नहीं है। तस्मात् शब्दरूप गुण का आश्रय ही आकाश है। आकाश के इस परिशेषानुमान में हेतु है 'शब्द' । 'प्रत्यक्षत्वे सति' यहाँ से लेकर आकाशस्याधिगमे लिङ्गम्' यहाँ तक के भाष्यग्रन्थ का यही आशय है। इस विषय में अनुमान प्रयोग इस प्रकार है कि शब्द पृथिवी प्रभृति आठ द्रव्यों से भिन्न किसी द्रव्य का गुण है, क्योंकि गुण होने पर भी वह पृथिव्यादि आठ द्रव्यों में आश्रित नहीं है। जो पृथिवी प्रभृति आठ द्रव्यों से भिन्न द्रव्य
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