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१३.
न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [द्रव्ये सृष्टिसंहार
प्रशस्तपादभाष्यम् मारभ्यते । तस्मिंश्चतुर्वदनकमलं सर्वलोकपितामहं ब्रह्माणं सकलभुवनसहितमुत्पाद्य प्रजासतें विनियुङ्क्ते । स च महेश्वरेण विनियुक्तो ब्रह्मातिशयज्ञानवैराग्यश्वयंसम्पन्नः प्राणिनां कम्मविपाकं विदित्वा कर्मापिण्ड की उत्पत्ति होती है । उसी तैजस पिण्ड में (महेश्वर) कमल के सदृश चार मुँहवाले ब्रह्मा को उत्पन्न कर प्रजा की सृष्टि के लिए नियुक्त करते हैं । विलक्षण ज्ञान, उत्कट वैराग्य और अभूतपूर्व ऐश्वर्य से सम्पन्न, एवं परमेश्वर के द्वारा नियुक्त वह ब्रह्मा प्राणियों के कर्म की परिणति समझकर कर्मों के अनुरूप ज्ञान, भोग,
न्यायकन्दली एवम् अनन्तरोक्तेन प्रक्रमेणोत्पन्नेषु महाभूतेषु महेश्वरस्य अभिध्यानमात्रात् सङ्कल्पमात्रात्, तैजसेभ्यः परमाणुभ्यः पार्थिवपरमाणुसहितेभ्यो महदण्डं महद् बिम्बमारम्यते। बिम्बारम्भे पार्थिवा अयवया उपष्टम्भकाः, तेनेदं वह्निपुञ्जप्रायं नाभूत्। तस्मिन्नण्डे चत्वारि वदनकमलानि यस्य तं ब्रह्माणं सर्वलोकपितामहं सर्वेषामेव लोकानामाद्यं पुरुषं समस्तैर्भुवनैः सहोत्पाद्य प्रजानां सर्गे जनने विनियुङ्क्ते त्वमिदं कुर्विति । स च महेश्वरेण विनियुक्तो ब्रह्मातिशयज्ञानवैराग्यैश्वर्यसम्पन्नो ज्ञानञ्च वैराग्यञ्चैश्वर्यञ्च ज्ञानवैराग्यश्वाणि, अतिशयेन ज्ञानवैराग्यैश्वर्याणि तैः सम्पन्न उपचितो ज्ञानातिशयात् प्राणिनां धर्माधम्मों यथावत् प्रत्येति । वैराग्यान्न पक्षपातेन
___ 'एवम्' अर्थात् द्वषणुकादि क्रम से महाभूतों के उत्पन्न हो जानेपर महेश्वर के 'अभिध्यान' अर्थात् केवल संकल्प से ही पार्थिव परमाणुओं से सहारा पाये हुए तैजस परमाणुओं से महदण्ड' अर्थात् महान् पिण्ड की उत्पत्ति होती है। इस पिण्ड (बिम्ब) की उत्पत्ति में चूंकि पार्थिव परमाणुओं का विशेष सम्बन्ध ह, अतः यह पिड ( तैजस होनेपर भी) वह्निपुञ्ज सदृश नहीं होता है । उसी पिण्ड में कमल के समान चार मुखवाले 'सर्वलोकपितामह' अर्थात् सभी पुरुषों के आदि पुरुष ब्रह्मा को सकल भुवनों के साथ उत्पन्न कर जाओं को उत्पन्न करने के लिए नियुक्त करते हैं । कि तुम यह काम करो'। महेश्वर के द्वारा सृष्टिकार्य के लिए नियुक्त वह ब्रह्मा 'अतिशय ज्ञानवैराग्यैश्वर्यसम्पन्नः' अर्थात् “ज्ञानञ्च, वैराग्यञ्च, ऐश्वर्यञ्च ज्ञानवैराग्यैश्वाणि, अतिशयेन ज्ञानवैराग्यैश्वाणि, तैः सम्पन्नः” इस व्युत्पत्ति के अनुसार उक्त वाक्य का अर्थ है कि वह ब्रह्मा उत्तम ज्ञान, उत्कट वैराग्य और अमित ऐश्वर्य से युक्त हैं । अपने उत्तम ज्ञान के बल से वह प्राणियों के धर्म और अधर्म को ठीक से समझते हैं । उत्कट वैराग्य के प्रभाव से उनकी प्रवृत्ति पक्षपात से दूषित नहीं होती है। अपने अमित ऐश्वर्य
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