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प्रकरणम् ]
भाषानुवादसहितम्
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प्रशस्तपादभाष्यम परिशेषाद गुणो भूत्वा आकाशस्याधिगमे लिङ्गम् । उक्त परिशेषानुमान के द्वारा आकाश के ज्ञान का हेतु है।
न्यायकन्दली स्वाश्रयस्य यत्समवायिकारणं तद्गुणपूर्वः शब्दो न भवति, पटरूपादिवदाश्रयोत्पत्त्यनन्तरमनुत्पादात् । अतः सुखादिवत् स्पर्शवतो विशेषगुणो न भवति । विशेषगुणत्वप्रतिषेधे सामान्यगुणत्वं भविष्यतीति नाशङ्कनीयम्, सामान्यविशेषवतस्तस्य बाौकेन्द्रियग्राह्यत्वेन रूपादिवद्विशेषगुणत्वसिद्धेः । पार्थिवपरमाणुरूपादयः स्पर्शवद्विशेषगुणा अथ चाकारणगुणपूर्वकाः परमाणोरकार्यत्वात् तद्वयवच्छेदार्थ प्रत्यक्षत्वे सतीति कृतम् । यावद्रव्यं शब्दो न भवति सत्येवाश्रये शङ्कादौ तस्य विनाशात्, अतोऽपि सुखादिवत् स्पर्शवद्विशेषगुणो न भवति । तत्रापि पार्थिवपरमाणुरूपादिभिरेव व्यभिचारः, तेषां सत्येवाश्रये परमाणावग्निसंयोगेन विनाप्रदर्शन करने के बाद 'शब्दः प्रत्यक्षत्वे सति' इत्यादि से प्रतिपादन करते हैं कि शब्द आकाशादि से भिन्न पृथिव्यादि का गुण नहीं है। जिस प्रकार पट का रूप अपने समवायिकारण पट के आश्रयीभूत तन्तुओं के रूप से उत्पन्न होता है, क्योंकि पट के उत्पन्न होने के बाद ही वह उत्पन्न होता है, उसी प्रकार से शब्द अपने समवायिकारण के आश्रयीभूत द्रव्यगत गब्द से उत्पन्न नहीं होता है, क्योंकि आश्रय की उत्पत्ति के बाद उसकी उत्पत्ति नहीं होती है। अतः जिस प्रकार स्पर्श से युक्त पृथिवी, जल, तेज और वायु इन चार द्रव्यों का सुख विशेषगुण नहीं है, उसी प्रकार शब्द भी स्पर्शों से युक्त द्रव्यों का गुण नहीं है। इससे यह शङ्का न करनी चाहिए कि "शब्द अगर उन स्पशयुक्त द्रव्यों का विशेषगुण नहीं है, तो विशेषगुण ही नहीं है, किन्तु सामान्य गुण ही है" क्योंकि शब्द परजाति एवं अपरजाति दोनों से युक्त है, एवं श्रोत्ररूप एक ही बाह्येन्द्रिय से गृहीत होता है, अतः वह अवश्य ही विशेषगुण है। पार्थिव परमाणु के रूपादि यद्यपि स्पर्शयुक्त द्रव्य के ही गुण हैं, फिर भी 'कारणगुणपूर्वक' नहीं हैं, अर्थात् अपने आश्रय के समवायिकारण के गुण से उत्पन्न नहीं होते हैं. क्योंकि परमाणु कार्य नहीं है। अतः पार्थिव परमाणु के रूपादि में व्यभिचार वारण के लिए प्रकृत परिशेषानुमान के प्रथम हेतु में 'प्रत्यक्षत्वे सति' यह विशेषण दिया गया है। शब्द चूकि याहद्दव्यभावी नहीं है, अर्थात् अपने समवायिकारणीभूत द्रव्य की अवस्थिति के सभी कालों में नहीं रहता है, क्योंकि (पूर्वपक्षियों के अभिमत शब्द के आश्रय) शङ्खादि के रहते हुए भी शब्द नष्ट हो जाते हैं । इसलिए अयावद्दव्यभावित्व हेतु से भी समझते हैं कि शब्द स्पर्श से युक्त द्रव्यों का गुण नहीं है। यह हेतु भी केवल अपने इस रूप से पार्थिव परमाणु के रूपादि में व्यभिचरित होगा, क्योंकि रूपादि गुणों के आश्रयीभूत
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