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१२२.
न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [द्रव्ये सृष्टिसंहार
प्रशस्तपादभाष्यम् मानेन वर्षशतान्ते वर्तमानस्य ब्रह्मणोऽपवर्गकाले संसारखिन्नानां सर्वप्राणिनां निशि विश्रामार्थं सकलभुवनपतेर्महेश्वरस्य सञ्जिहीर्षासमकालं ब्रह्मा के मोक्ष का समय होता है, उस समय कुछ काल तक प्राणियों के ( जन्म मृत्यु जनित ) खेद को मिटाने के लिए सभी भुवनों के अधिपति महेश्वर को संहार
न्यायकन्दली रेतयोरुपवर्णनात् । महाभूतानामित्युक्ते त्रयाणामेव परिग्रहः, कपिजलानालभेतेतिवद् बहुत्वसंख्यायास्तावत्येव चरितार्थत्वात्, अतश्चतुर्णामित्युक्तम् । चतुर्णामित्युक्ते चानन्तरोक्तमेव वायुकार्य शरीरमिन्द्रियं विषयः प्राण इति चतुष्टयं बुद्धौ निविशते, तन्निवृत्त्यर्थं महाभूतानामिति । नन्वेवं तहि द्वयणुकानामुत्पत्तिविनाशौ न प्रतिज्ञातौ स्यातां तेषामणुत्वात् । नैवम्, विधिशब्दोपादानात् । येन प्रकारेण महाभूतानामुत्पत्तिविनाशौ स प्रकारः कथ्यत इत्युक्तम् । तेषाञ्च द्वयणुकादिप्रक्रमेणोत्पत्तिरापरमाण्वन्तश्च विनाश इति । अतो द्वयणुकानामपि सृष्टिसंहारौ प्रतिज्ञातौ स्याताम्, अर्थप्रतिपादनमात्रस्य विवक्षितत्वात् । फिर भी यह चारों का साधर्म्य-कथन नहीं है, क्योंकि पृथिव्यादि में से प्रत्येक की सृष्टि और संहार का वर्णन अलग-अलग है। 'महाभूतानाम्' केवल इतना कहने से तीन महाभूतों का ही बोध होता, क्योंकि कपिजलान्' आलभेत' इत्यादि वाक्यों के बहुवचनान्त 'कपिञ्जलान्' आदि पदों से त्रित्व का ही बोध होता है, बहुत्व संख्या उतने सें भी चरितार्थ हो जाती है, अतः 'चतुर्णाम्' यह पद कहा है। केवल 'चतुर्णाम्' इतना मात्र कह देने से अव्यवहित पहिले कहे हुए वायु के (शरीर, इन्द्रिय, विषय और प्राण रूप ) चारों भेद ही जल्दी से बुद्धि में आते हैं, उनको हटाने के लिए 'महाभूतानाम्' यह पद है। (प्र०) तो फिर इससे द्वयणुकों को उत्पत्ति और उनका विनाश इस प्रतिज्ञा के अन्दर नहीं आते हैं। क्योंकि वे अणु हैं, (महान् नहीं)। नहीं, क्योंकि 'विधि' शब्द का उपादान है। (अर्थात् ) जिस प्रकार महाभूतों की उत्पत्ति और विनाश होता है, वह प्रकार कहते हैं । उनको उत्पत्ति द्वयणुकादिक्रम से ही होती है और विनाश भी परमाणु पर्यन्त होता है अतः द्वचणुकों की उत्पत्ति और विनाश भी उक्त प्रतिज्ञा के अन्दर आ जाते हैं।
१. श्रुति में 'वसन्ताय कपिञ्जलान् आलभेत' यह वाक्य है । इस वाक्य में प्रयुक्त 'कपिञ्जलान्' इस पद से तीन ही कपिजल अभिप्रेत हैं, या तीन से लेकर आगे की संख्या में यथेच्छाचार है ? क्योंकि बहुत्व तो तीन से लेकर आगे की सभी संख्याओं में समान है। इसी संशय के समाधान से कहा है कि तीन ही कपिजलों का
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