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करणम् ] भावानुवादसहितम्
११५ प्रशस्तपादभाष्यम् मानस्पर्शाधिष्ठानभूतः स्पर्शशब्दधतिकम्पलिङ्गस्तिय्यंग्गमनस्वभावो मेघादिप्रेरणधारणादिसमर्थः। कम्प इन चार हेतुओं से अनुमेय,और कुटिल गति से चलनेवाला है। मेघ आदि वस्तुओं को इधर उधर जाने में प्रेरित करना और उनको गिरने न देना विषयरूप वायु के कार्य हैं।
न्यायकन्दली प्रत्यक्षमेव, त्वगिन्द्रियव्यापारेण वायुतीत्यपरोक्षज्ञानोत्पत्तेरिति कश्चित्, तन्न युक्तम्, स्पर्शव्यतिरिक्तस्य वस्त्वन्तरस्यासंवेदनात्, अपरोक्षज्ञाने तु स्पर्श एव प्रतिभाति नान्यत्, यदपि वायुतीति ज्ञानं तदभ्यासपाटवातिशयाद् व्याप्तिस्मरणाद्यनपेक्षं स्पर्शनानुमानम्, चक्षुषेव वृक्षादिगतिक्रियोपलम्भात्। शीतोष्णस्पर्शभेदप्रतीतौ वायुप्रत्यभिज्ञानमपि तदाश्रयोपनायकद्रव्यानुमानादेव । त्वगिन्द्रियेण तु शीतोष्णस्पर्शाभ्यामन्यस्य न प्रतिभासोऽस्ति । स्पार्शनप्रत्यक्षो वायुरुपलभ्यमानस्पर्शाधिष्ठानत्वाद् घटवदित्यनुमानं शशादिषु
विषयरूप वायु इतने ही हैं, इससे अधिक नहीं, इससे कम भी नहीं' इस व्यवस्था के लिए 'विषयस्तु' इत्यादि लिखते हैं । अर्थात् पृथिवी, जल और तेज के स्पर्श से विलक्षण जिस स्पर्श की उपलब्धि होती है, उस स्पर्श का आश्रय ही 'विषय' रूप वायु है । (प्र.) इस स्पर्श के आश्रयरूप द्रव्य की सत्ता में प्रमाण क्या है ? ( उ० ) कोई कहते हैं कि उसके अस्तित्व में प्रत्यक्ष ही प्रमाण है, क्योंकि त्यगिन्द्रिय के व्यापार से ही 'वायु चल रही है' इस प्रकार की अपरोक्ष प्रतीति होती है। किन्तु यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि इस अपरोक्ष ज्ञान में त्वगिन्द्रिय के व्यापार के द्वारा स्पर्श से भिन्न कोई और पदार्थ भासित नहीं होते, अर्थात् उस अपरोक्ष ज्ञान में स्पर्श को छोड़कर ( उसके आश्रयादि) और कोई वस्तु प्रतिभासित नहीं होती। 'हवा चलती है' यह ज्ञान भी स्पर्श हेतुक अनुमिति ही है। यह और बात है कि बार बार स्पर्शहेतुक वायु की अनुमिति से उत्पन्न विशेष प्रकार की पटुता से उक्त अनुमिति में व्याप्ति की अपेक्षा नहीं होती, जैसे कि चक्षु से वृक्षादिगत क्रिया की अनुमिति में व्याप्ति को अपेक्षा नहीं होती। उस स्पर्श में शीत और उष्ण से वैलक्षण्य की प्रतीति के बाद जो यह प्रत्यभिज्ञा होती है कि 'यह स्पर्श वायु का है' वह भी स्पर्श के आश्रयरूप द्रव्य के अनुमान से ही होती है । तस्मात् त्वगिन्द्रिय से शीतोष्णादि स्पर्शों से अतिरिक्त किसी और वस्तु का प्रत्यक्ष नहीं होता है। 'वायु का स्पार्शन प्रत्यक्ष होता है, क्योंकि वह प्रत्यक्ष स्पर्श का आश्रय है, जैसे कि
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