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प्रकरणम् ]
भाषानुवादसहितम्
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प्रशस्तपादभाष्यम वायुत्वाभिसम्बन्धाद्वायुः । स्पर्शसङ्ख्यापरिमाणपृथक्त्वसंयोगविभागपरत्वापरत्वसंस्कारवान् । स्पर्शोऽस्यानुष्णाशीतत्वे
वायुत्व जाति के सम्बन्ध से वायु का व्यवहार करना चाहिए। यह स्पर्श, संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व और संस्कार इन नौ गुणों से युक्त है । इसमें अपाकज अनुष्णाशीत स्पर्श ही है ये सभी
न्यायकन्दली प्रत्यक्षत्वप्रसङ्गाच्च, किन्तु स्वरूपविषयः । एवञ्चेत्, सांशद्रव्यस्येव निरंशस्यापि परमाणोरेकस्य युगपत्कारणसम्भवे सत्यनेकसंयोगाधिकरणत्वमुपपद्यत एवेति न तत्प्रतिक्षेपः।
प्रत्यक्षं पृथिव्यादित्रयं व्याख्यायाप्रत्यक्षद्रव्यव्याख्यानावसरे नित्यानित्योभयस्वभावद्रव्यनिरूपणस्य प्रकृतत्वाद्वायु व्याचष्टे-वायुत्वाभिसम्बन्धाद्वायुरिति । व्याख्यानं पूर्ववत् । तस्य गुणान् कथयति-स्पर्शत्यादि । अत्रापि पूर्ववद् व्याख्या । यादृशः स्पर्शो वायौ वर्तते तं दर्शयति-स्पर्श इति । पृथिवीस्पर्शः पाकजः परमाणुषु, तत्पूर्वकश्च स्वकार्येषु । अस्य तु स्पर्शोऽपाकज हो जाएगा, जो कि केवल अंश ही है ( उसका कोई अंश नहीं है ), अतः संयोग को अंश की अपेक्षा नहीं है द्रव्य के स्वरूप की अपेक्षा है । तस्मात् कारणों के रहने पर एक समय में ही अंश से युक्त द्रव्यों की तरह अंशशून्य परमाणु में भी अनेक परमाणुओं के संयोग की अधिकरणता युक्तिविरुद्ध नहीं है, अतः अंशरहित परमाणु की सत्ता में कोई विवाद नहीं हैं ।
प्रत्यक्ष प्रमाण से ज्ञात होनेवाले पृथिवी, जल और तेज इन तीन पदार्थों के निरूपण के बाद प्रत्यक्ष प्रमाण से ज्ञात न होनेवाले द्रव्यों के निरूपण की बारी आती है, एवं पृथिवी प्रभृति कहे हुये द्रव्य नित्य और अनित्य दोनों ही प्रकार के हैं, अतः पूर्वागत होने के कारण नित्यानित्यस्वभाव के द्रव्य का ही निरूपण क्रम से प्राप्त है। अप्रत्यक्ष द्रव्यों में से नित्यानित्यस्वभाव के कारण वायु का निरूपण ही क्रमप्राप्त है । तदनुसार 'वायुत्वाभिसम्बन्धाद्वायुः” इत्यादि से वायु का निरूपण करते हैं । इस वाक्य की व्याख्या "पृथिवीत्वादिसम्बन्धात् पृथिवी" इत्यादि वाक्यों की तरह करनी चाहिए। 'स्पर्शः' इत्यादि से वायु के गुणों का वर्णन करते हैं। इसकी भी व्याख्या पृथिवी प्रभृति द्रव्यों के गुण के बोधक वाक्यों की तरह करनी चाहिए । पार्थिव परमाणुओं में पाकज स्पर्श है, अत: उन परमाणुओं के कार्य और पार्थिव द्रव्यों में भी पाकज स्पर्श ही है, क्योंकि कार्य के गुण कारण के गुणों से उत्पन्न होते हैं । इस ( वायु ) का स्पर्श भी अपाकज ही है, अतः यह स्पर्श वायु का लक्षण है। यह स्पर्श अपाकज इसलिए है कि
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