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न्यायकन्दलीसंवलितप्रशस्तपादभाष्यम् [द्रव्ये तेजः
___ न्यायकन्दली सद्भावं बाधत इति चेत् ? कोऽयं युगपद्योगो नाम ? किमेकस्य परमाणोः षड्भिः परमाणुभिः सह युगपदुत्पादः ? किं वा युगपत्संयोगः ? युगपदुत्पादस्तावत् कारणयोगपद्यादेव निरंशस्यापि यदि भवेत् को विरोधः, अथ युगपत्संयोगः, सोऽपि नानुपपन्नः, न ांशविषयः संयोगो द्रव्याणाम्, निरंशस्याप्याकाशस्य तद्भावात्, अंशस्याप्यंशान्तरसद्भावे परमाणुमात्रे संयोगस्थितौ तस्याजाती है। (उ०) यह 'युगपद्योग' क्या है ? (१) छः परमाणुओं के साथ एक ही समय में एक परमाणु की उत्पत्ति ( युगपद्योग' शब्द का अर्थ है ? ) या (२) एक परमाणु के साथ छः परमाणुओं का संयोग ? (इन में प्रथम विकल्प के प्रसङ्ग में यह कहना है कि) (१) अगर अंशशून्य वस्तुओं के भी कारण हों तो फिर कथित सात परमाणु रूप निरंश वस्तुओं के कारणों का अगर एक समय में सम्बलन हो सके तो एक ही समय में सात परमाणुओं की सृष्टि में क्या बाधा है ? इसमें कौन सा विरोध है ? (२) अगर प्रकृत युगपद्योग शब्द का दूसरा अर्थ है, तब भी कोई अनुपपत्ति नहीं है, क्योंकि यह नियम नहीं है कि संयोग अंशशून्य द्रव्यों का ही हो, क्योंकि अंशशून्य आकाश में भी संयोग मानते ही हैं। अगर संयोग केवल अंशों में ही माना जाय तो फिर सभी अंशों का भी अंश मानना पड़ेगा, फलतः संयोग केवल परमाणु में ही सीमित
___अर्थात एक परमाणु एक ही समय में छः परमाणुओं के साथ संयुक्त होने के कारण 'षडशः' अर्थात् छः अंशों से युक्त है, क्योंकि एक ही स्थान में छ: संयोग नहीं हो सकते । एक वस्तु के भिन्न-भिन्न अंशों में ही विभिन्न संयोगों की उत्पत्ति होती है। अगर आग्रहवश यह मान भी लें कि एक ही परमाणु के एक ही अंश में छः परमाणुओं के छः संयोग होते हैं तो फिर 'पिण्डः स्थादणुमात्रकः' अर्थात् इस प्रकार सात परमाणुओं से जिस 'पिण्ड' की उत्पत्ति होगी वह 'अणुमात्र' अर्थात् परमाणुस्वभाव का ही होगा । इसमें स्थूलता नहीं आ सकती। कोई भी वस्तु अपने पहिले स्वरूप से अधिक लम्बी चौड़ी या अधिक वजन को इसलिए होती है कि उसके विभिन्न अंशों में विभिन्न द्रव्यों के विभिन्न संयोग होते हैं। अतः विना अंश के परमाणुओं से उत्पन्न वस्तु स्थूल नहीं हो सकती, परमाणु के एक प्रदेश में विभिन्न परमाणुओं के भिन्न-भिन्न संयोग मान लेने पर भी नहीं। एवं एक में अनेक संयोग हो भी नहीं सकते, अतः परमाणु के अनेक प्रदेश मानने होंगे । तस्मात् एक परमाणु के चार दिशाओं के चार अंशों में चार विभिन्न परमाणुओं के चार संयोग, एवं परमाणु के नीचेवाले अंश में एक परमाणु का एक संयोग, एवं उसके ऊपर प्रदेश में एक परमाणु का एक संयोग, इस प्रकार छः दिशाओं से छः संयोग से ही स्थूल वस्तु की सृष्टि हो सकती है। फलतः एक परमाणु के उक्त छः दिशाओं से छः परमाणु आकर संयुक्त होते हैं, तभी स्थूल सृष्टि होती है । तस्मात् जिसे आप परमाणु कहते हैं, वस्तुतः वह छः अंशवाली एक वस्तु है । फलतः निरवयव परमाणु की सत्ता ही अप्रामाणिक है।
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